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"क्या करूँ / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर
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जितना भी
तुम्हें भूलने की
कोशिश की
सब बेकार गई
उतना ही
और सिर चढ़कर
बोली तुम्हारी याद
अब लगता है
तुझे याद करूँ
बहुत याद
तुम्हें
अंत का याद करूँ
ताकि
तुम्हें
भूल सकूँ...।