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"बन्दर भगाती औरतें / रेखा चमोली" के अवतरणों में अंतर

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19:29, 28 जून 2017 के समय का अवतरण

इन दिनों खेतों में लहलहा रही हैं तैयार फसलें
गेहूँ जौ सरसों राडू प्याज मटर धनिया लहसुन
इठला रहा है आलू
अपनी नयी ताजी बढती पत्तियांे पर
नए श्रंगार के साथ पेडों ने फैला ली हैं बाहें
थोडा ज्यादा मेहनत करनी पड रही है
चारा पत्ती वाले पेडों को
अभी कुछ कम हरी दिखती है देह
पर बहुत जल्द ये पूरे सजे धजे दिखेंगे
इन दिनों भरी पूरी मॉ सी विनम्र और स्वाभिमानी दिखती है पृथ्वी
इन्हीं खेतों से
बारी-बारी समूह बना
बंदर भगा रही हैं औरतें
बंदर जो अपनी पूरी टोली के साथ आ धमकते हैं
अपने नन्हें बच्चों को सीने से चिपकाए
भूखे-प्यासे
इनकी भूख-प्यास का मुलाजा किया तो
अपने बच्चों की थाली रह सकती है खाली
इसीलिए तेज धूप में सतर्क
लाठियां लिए खडी हैं औरतें
मानों अपने बच्चों की भूख के हर दुश्मन को मार गिराएंगी।