भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छंद 8 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:54, 29 जून 2017 के समय का अवतरण
(वसंतागम सुन दर्शनार्थ उत्सुक होने का वर्णन)
सुनत सलौनी बात यह, तन-मन सबै भुलाइ।
ऋतु-पति के दरसन हितै, बाढ्यौ उर मैं चाइ॥
भावार्थ: ऐसा प्रिय संवाद सुनकर तन-मन की सुधि भूल महाराज ‘वसंत’ के दर्शन की लालसा बढ़ी।