भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छंद 18 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:48, 29 जून 2017 के समय का अवतरण
भुजंगप्रयात
रमैं पच्छिनी सौं सबै पच्छ जोरैं। बिहंगावली आपनौं भाव भोरैं॥
जयंती-जपा जाति के बृच्छ नाना। धरैं हैं चहूँ कोद सौं मोद-बाना॥
भावार्थ: अपने भाव को भूले हुए मस्त सब पक्षी, पंख से पंख सटाए दंपती-विहार में प्रवृत्त हैं। योंही चारों ओर जयंती-जपा जाति के अनेक वृक्ष प्रसन्न वेष धारण किए दीख पड़ते हैं।