भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छंद 46 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:08, 29 जून 2017 के समय का अवतरण

रोला
(अनुशयाना, गुप्ता और लक्षिता का संक्षिप्त वर्णन)

उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु-दुख उपजावैं।
लखि सँकेत तैं फिरे स्याम, कहुँ बिरह बढ़ावैं॥
हरि-सँग बिहरत लखैं सखी, तब निज रति गोवैं।
लखि बिहार कौ चिह्न, दूति रस-बैन निचोवैं॥

भावार्थ: कभी संकेत-स्थल को उजड़ते देख संतापित होती हैं, कभी संकेत-स्थल से श्याम को पलटते देख कातर हो दुःख पाती हैं और कभी जब सखी उनको श्याम के संग विहार करते देख लेती हैं तो वह अपने सुरत को छिपाती हैं तथा जब उनके तन पर सुरत के चिह्न पाती हैं तो दूतियाँ रस में सने हुए वचनों से उनका वर्णन करती हैं।