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17:54, 3 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

सेमल के
वे लाल-लाल फूल
जिन्हें देखकर
बाग बन जाता था मेरा मन
देखते ही देखते मुरझाने लगे
धरती की गोद में समाने लगे
नागा साधु सा हो गया सेमल
हारा नहीं किया नहीं आत्मघात
उदास आदमी की तरह
करने लगा तप
उठाकर अपनी भुजाएं
कुछ दिन गुजरे
चिकनाने लगीं सूखी डालियाँ
निकलने लगीं नयीं कोंपलें
जल्द ही धानी और हरे पत्तों से भर गया
भरे-पूरे गृहस्थ सा हो गया
सेमल का वह पेड़