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"रात का सच / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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09:57, 4 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

सारी दुनिया
जब जा रही होती है
अपने बसेरों की तरफ
निकलते हैं अपने बसेरों से
उल्लू और चमगादड़
रात का सच देखने
वह सच
जिसे नहीं लिख सकते वे
नहीं कह सकते किसी से
खेद है
कौन समझेगा
उनकी भाषा?