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मांटी में कैन्हें पड़लै दरार
फाटलोॅ जाय छै सगरो करार॥
जन्ने खानोॅ तन्ने काँटोॅ
पत्थर के तों कत्ते डाँटो
खानोॅ समुंदर जल फरार॥
सुखलोॅ छै गाछोॅ के पत्ता
वैसे टुटलोॅ लत्तर-लत्ता
फल छै सड़लोॅ खटोॅ डकार॥
छेकै मांटी, रंग में भेद
बात न´् समझोॅ, एकरे खेद
डोले देहिया, पढ़ै लिलार॥
आँखोॅ सें हेरोॅ, की मांटी के दोष?
पहिनेॅ गुस्सा, पिछू कॅ होश
‘रानीपुरी’ कहै, मेटोॅ दरार।