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"पता नहीं / स्वाति मेलकानी" के अवतरणों में अंतर

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11:44, 13 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

हर साल बारिश में
खिसकते हैं पहाड़
और वह दब जाती है।
बरसात खत्म होने पर
मलवा हटता है
और वह निकलती है
पहले से कमजोर होकर।
जाड़ो की वर्फ में
आग जलाती है
और
गर्मियों में
जलते जंगलो के बीच
खुद झुलस जाती है।
बदलते मौसमों के बीच
छिटक रहे है पहाड़
और वह सिकुडती जा रही है
लगातार।
इस बार बरसात में
फिर खिसकेंगे पहाड़
और एक बार फिर
वह
दब जाएगी।
हर बार की तरह मलवा हटाने पर
वह मिलेगी या नहीं
पता नहीं...