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"पिता का मन / स्मिता सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

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14:26, 23 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मैं लिख देती हूँ
अपने घर की नींव
घर की ऊंची छत
और सारी मज़बूत दीवारें
अपनी गली अपना मोहल्ला
और अपने घर का पता
मैं लिख देती हूँ
चूल्हे में धधकती आंच
पकती रोटियाँ
और तृप्त होती भूख
मैं लिख देती हूँ
एक सुकून भरी नींद
और कुछ मीठे सपने
मैं लिख देती हूँ
आँगन का वो विशाल दरख्त
और पत्ती पत्ती छांव
मैं लिख देती हूँ
सागर,धरती,आकाश
और पहाड़ सा एक जीवन
बस नहीं लिख पाती तो
चेहरे की कुछ झुर्रियाँ
खुरदरी हथेलियाँ
और थकते लड़खड़ाते क़दम
हाँ कभी भी नहीं लिख पाती मैं
अपने पिता का मन...