भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुनो! / स्वाति मेलकानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वाति मेलकानी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:53, 26 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
सुनो!
मेरी मदद करो ना
मैं किसी को ढूंढ रही हूँ
क्या कहा तुमने?... ‘तुम थके हो’
थकी तो मैं भी हूँ
पर
मैं किसी को ढूंढ रही हूँ
तुम सुन रहे हो ना?
मैं चमकदार आँखों वाली
एक लड़की को ढूंढ रही हूँ
जो हुआ करती थी
तुम्हारी पत्नी बनने से पहले
सुनो!...
सच सच बताना
क्या वह मैं ही थी?