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जब चाहे थे शब्द तुम्हारे
मुझको तुमसे मौन मिला
और जब
तुम्हारा सानिध्य
मेरा एकमात्र संबल था
तब मुझे एकान्त
और
अवसाद के
लम्बे रास्ते से गुजरना पड़ा।
एक असहनीय कालखंड को
जी लेने के बाद
दुःख
और वितृष्णा के
कई जंगल
उग आये है मेरे भीतर...
मेरे सहचर!
आज भी तुम्हीं हो
मेरे निकटतम
और रहोगे तब तक
जब तक रहूँगी मैं स्वयं
किन्तु
मेरे और तुम्हारे
अतिव्याप्त अंशो को
मैं इस क्षण
अलग कर रही हूँ।