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"जंगल / लवली गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर

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जिन्हें यात्राओं से प्रेम होता है
+
बेतरतीब टहनियों के बीच लटके मकड़ियों के उलझे जाल
वे यात्री की तरह कम
+
आकाश की फुसफुसाहट है जंगल के कानों में
फ़क़ीरों की तरह अधिक यात्रा करते हैं
+
धरती पर बिखरी पेड़ों की उथली उलझी जड़ें
जिन्हें स्त्रियों से प्रेम होता है  
+
उन फुसफुसाहटों के ठोस जवाब में लगते धरती के कहकहे हैं
वे उनसे पुरुषों की तरह कम 
+
स्त्रियों की तरह अधिक प्रेम करते हैं
+
प्रेम के रंगीन ग़लीचे की बुनावट में  
+
अनिवार्य रूप से उधड़ना पैवस्त होता है
+
जैसे जन्म लेने के दिन से हम चुपचाप
+
मरने की ओर क़दम दर क़दम बढ़ते रहते हैं
+
वैसे ही अपनी दोपहरी चकाचौंध खोकर
+
धीरे- धीरे हर प्रेम सरकता रहता है
+
समाप्ति की गोधूलि की तरफ
+
टूटना नियति है प्रेम की
+
यह तो बिलकुल हो ही नहीं  सकता
+
कि जिसने टूट कर प्रेम किया हो
+
वह अंततः न टूटा हो
+
  
प्रेम में लिए गए कुछ चिल्लर अवकाश
+
आकाश की फुसफुसाहटों में न उलझकर
प्रेम टूट जाने से बचाने में मदद करते हैं
+
चालाक मकड़ियाँ उस पर कुनबा संजोती हैं
वह जो प्रेम में आपका ख़ुदा है
+
जो तितलियाँ दूर तक उड़ने के उत्साह में
अगर अनमना होकर छुट्टी मांगे
+
नज़दीक़ लटके जाले नहीं  देख पाती
तो यह समझना चाहिए
+
वे पंखों से चिपक जाने वाली
कि प्रेम के टूटने के दिन नज़दीक़ हैं
+
लिसलिसी कानाफूसियों से हारकर मर जाती हैं
पर टूटना मुल्तवी की जाने की कोशिशें ज़ारी है
+
  
प्रेम आपको तोड़ता है
+
धरती की हँसी को नियामत समझकर
आपके रहस्य उजागर करने के लिए
+
विनम्र छोटे कीट वहाँ अपनी विरासत बोते हैं
बच्चा माटी के गुल्लक को यह जानकर भी तोड़ता है
+
लेकिन उन अड़ियल बारासिंघों को सींग फँसा कर मरना पड़ता हैं
कि उसके अंदर चंद सिक्कों के अलावा कुछ भी नहीं 
+
जो हँसी के ढाँचे को अनदेखा करते हैं
यह तुम्हारे लिए तो कोई रहस्य भी नहीं  था
+
कि मेरे अंदर कविताओं के अलावा कुछ भी नहीं 
+
फिर भी तुमने मुझे तोडा
+
  
हम दोनों खानाबदोश घुमक्कड़ों के उस नियम को मानते थे
+
(2)
कि चलना बंद कर देने से आसमान में टंगा सूरज
+
नीचे गिर जाता है और मनुष्य का अस्तित्व मिट जाता है
+
  
आजकल लोग कोयले की खदानों में
+
स्मृतियों से हम उतने ही परिचित होते हैं
ज़हरीली गैस जाँचने के लिए
+
जितना अपने सबसे गहरे प्रेम की अनुभूतियों से
इस्तेमाल होने वाले परिंदे की तरह
+
पौधे धूप देखकर अपनी शाखाओं की दिशा तय कर लेते हैं
पिंजड़े में लेकर घूमते हैं प्रेम
+
प्रेम के समर्थन के लिए सुदूर अतीत में कहीं स्मृतियाँ
ज़रा सा बढ़ा माहौल में ज़हर का असर
+
अपनी तहों में वाज़िब हेर-फेर कर लेती हैं
और परिंदे की लाश वहीं छोड़कर
+
आदमी हवा हो जाता है
+
  
कुछ लोगों में ग़ज़ब हुनर होता है
+
हम प्रेम करते हैं या स्मृतियाँ बनाते हैं
पल भर में कई साल झुठला देते हैं
+
यह बड़ा उलझा सवाल है
फिर अनकहे की गाठें लगती रहती है
+
तभी तो हम केवल उनसे प्रेम करते हैं
साल दर साल रिश्तों में और एक दिन
+
जिनकी स्मृतियाँ हमारे पास पहले से होती हैं
गाठें ही ले लेती है साथ की माला में
+
या जिनके साथ हम आसानी से स्मृतियाँ बना सकें
प्रेम के मनकों की जगह
+
  
प्रेम कभी पालतू कुत्ता नहीं हो पाता
+
(3)
जो समझ सके
+
आपका खीझकर चिल्लाना
+
आपका पुचकारना
+
आपका कोई भी आदेश
+
वह निरीह हिरन सी
+
पनैली आँखों वाला बनैला जीव है
+
आप उस पर चिल्लायेंगे
+
वह निरीहता से आपकी ओर ताकेगा
+
आप उसे समझदार समझ कर समझायेंगे
+
वह बैठ कर कान खुजायेगा
+
अंत में तंग आकर आप
+
उसे अपनी मौत मरने के लिए छोड़ जाएंगे
+
  
जब भी सर्दियाँ आती हैं मेरी इच्छा होती है
+
जाता हुआ सूरज सब कलरवों की पीठ पर छुरा घोंप जाता है
मैं सफ़ेद ध्रुवीय भालू में बदल जाऊँ
+
गोधूलि की बेला आसमान में बिखरा दिवस का रक्त अगर शाम है
ऐसे सोऊँ की नामुराद सर्दियों के
+
तो रौशनी की मूर्च्छा को लोग रात कहते हैं
ख़त्म होने पर ही मेरी नींद खुले
+
जब भी प्रेम दस्तक देता है द्वार पर
+
मैं चाहती हूँ मेरे कान बहरे हो जाएँ
+
कि सुन ही न सकूँ मैं इसके पक्ष में
+
दी जाने वाली कोई दलील
+
जो खूबसूरत शब्द हमसे बदला लेना चाहते हैं
+
वे हमारे छूट गए पिछले प्रेमियों के नाम बन जाते हैं
+
  
बाढ़ का पानी कोरी ज़मीं को डुबो कर लौट जाता है
+
जब वह उनींदी लाल आँखें खोलता मैं उसे सुबह कहती थी
धरती की देह पर फिर भी छूट जाते हैं तरलता के छोटे गह्वर
+
जब अनमनापन उसकी गहरी काली आँखों के तले से
दुःख के कारणों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं  होता
+
नक्षत्र भरे आकाश तक फैलता मेरी रात होती थी
बस एक - सा पानी होता है जो सहोदरपने के नियम निबाहता
+
उम्र भर दुःखों के सब गह्वरों में झिलमिलाता रहता है
+
  
भय कई तरह के होते हैं, लेकिन आदमियों में
+
(4)
कमजोर पड़ जाने का भय सबसे बलवान होता है
+
अंकुरित हो सकने वाले सेहतमंद बीज को
+
प्रकृति कड़े से कड़े खोल में छिपाती है
+
बीज को सींच कर अपना हुनर बताया जा सकता है
+
उसपर हथौड़ा मारकर अपनी बेवकूफी साबित कर सकते हैं
+
यों भी तमाम बेवकूफ़ियों को
+
ताक़त मानकर ख़ुश होना इन दिनों चलन में है
+
  
रोना चाहिए अपने प्रेम के अवसान पर
+
टहनियों के बीच टंगे मकड़ियों के जालों के  
जैसे हम किसी सम्बन्धी की मौत पर रोते है
+
बीच की खाली जगह से जंगल की आँखें मुझे घूरती हैं
वरना मन में जमा पानी ज़हरीला हो जाता है
+
मेरे कन्धों के रोम किसी अशरीरी की उपस्थिति से
फिर वहाँ  जो भी उतरता है उसकी मौत हो जाती है
+
चिहुँककर बार-बार पीछे देखते हैं
त्यक्त गहरे कुऐं में उतर रहे मजदूर की तरह
+
  
तुम्हारी याद भी अजीब शै है
+
उन्हें शांत रहने को कहती मैं खुद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखती
जब भी आती है कविता की शक़्ल में आती है
+
ऐसे मुझे हमेशा यह लगता रहता है कि वह मुझसे कुछ ही दूर
 +
बस वहीं खड़ा है जहाँ मैंने अंतिम दफ़ा उसे विदा कहा था
  
तुम किसी क्षण मरुस्थल थे. रेत का मरुस्थल नही. वह तो आंधियों की आवाजाही से आबाद भी रहता है. उसमे रेत पर फिसलता सा अक्सर दिख जाता है जीवन. तुम शीत  का मरुस्थल थे जिसमे नीरवता का राग दिवस - रात्रि गूंजता था. तुमसे मिलने से पहले मैं समझती थी कि सिर्फ बारिश से भींगी और सींची गई धरती पर उगे घनघोर जंगल में ही कविता अपना मकान बनाना पसंद करती है, सिर्फ वहीं  कविता अपनी आत्मा का सुख पाती है.  तुमसे मिलकर मैंने जाना बर्फ के मरुस्थलों में भी निरंतर आकार लेता है सजीव लोक. शमशान सी फैली बर्फीली घाटियाँ भी कविता के लिए एकदम से अनुपयोगी नही होती. जीवन होता  है वहाँ भी कफ़न सी सफ़ेद बर्फ़ानी चादर के अंदर सिकुड़ा और ठिठुरता हुआ. कुलबुलाते रंग - बिरंगे कीट - पतंगे न सही लेकिन सतह पर जमी बर्फ की पारभाषी परत के नीचे तरल में गुनगुनापन होड़ करता है जम जाने की निष्क्रियता के ख़िलाफ़. मछलियों के कोलाहल वहाँ भी भव्यता से मौजूद रहते हैं.
+
प्रेम में उसका मेरे पास न होना
 +
कभी उसकी उपस्थिति का विलोम नहीं हो पाया
 +
मुझे लौटते देखती उसकी नज़र को
 +
मैं अब भी आँचल और केशों के साथ कन्धों से लिपटा पाती हूँ
  
जिसे बस चुटकी भर दुःख मिला हो
+
(5)
वह उस ज़रा से दुःख को तम्बाकू की तरह
+
लुत्फ़ बढ़ाने के लिए बार - बार फेंटता मसलता है
+
जिसने असहनीय दुःख झेला हो वह टुकड़े भर सुख की स्मृतियों से
+
अनंत शताब्दियों तक हो रही दुःख की बरसात रोकता है
+
उस गरीब औरत की तरह जो जीवन भर शादी में मिली
+
चंद पोशाकों से हर त्यौहार में अपनी ग़रीबी छिपाती है
+
संतोष से अपना शौक़ श्रृंगार पूरा कर लेती है
+
  
सब कहाँ हो पाते हैं छायादार पेड़ों के भी साथी
+
हरे लहलहाते जंगलों में लाल-भूरी धरती फोड़कर
कुछ उनकी छाल चीर कर उनमें डब्बे फंसा देते हैं
+
उग आये सफ़ेद बूटे जैसे मशरूम
जिसमे वे पेड़ों का रक्त जमा करते हैं
+
मकड़ी के सघन जालों के बीच की खाली जगह से गिर गए जंगल के नेत्र गोलक है
दुनिया में दुःख के तमाशाई ही नहीं  होते
+
यहाँ पीड़ा के कुछ सौदागर भी होते हैं
+
  
मैं प्रेम की राह पर सन्यासियों की तरह चलती हूँ
+
जंगल हमेशा मुझे अविश्वास से देखता है
जीवन की राह पर मृत्यु द्वारा न्योते गए अतिथि की तरह
+
जैसे वह मेरा छूट गया आदिम प्रेमी है
 +
जो अधिकार न रखते हुए भी यह ज़रूर जानना चाहता है
 +
कि इन दिनों मैं क्या कर रही हूँ
  
जिन गुफाओं में संग्रहित पानी तक
+
अविश्वासों के जंगल में मैंने उसे हमेशा
कभी रौशनी नहीं पहुँचती
+
लौट आने के भरोसे के साथ खोया था
वहाँ की मछलियों की आँखें नहीं होती
+
वह मेरे पास से हमेशा लौटने के भरोसे के साथ गया
खूबसूरत जगहों में पैदा होने वाले कवि भी हो पाएं
+
तब भी वे कविता से प्रेम कर बैठते हैं
+
अगर वे कवि हो ही जाएँ
+
तो दुनिया के सब बिंब उनकी कविता में
+
जंगल के चेहरों पर आने वाले अलग – अलग भावों के
+
अनुवाद में बदल जाते हैं
+
  
 +
(6)
  
सोचती हूँ तुम्हारे मन के तल में जमा
+
मेघों की साज़िश भरी गुफ्तगू को बारिश कहेंगे
काँच से पानी के वहाँ रखे नकार के पत्थरों में  
+
तो सब दामिनीयों  को आकाश में चिपकी जोंक मान लेना पड़ेगा
क्या जमती होगी स्मृतियों की कोई हरी काई
+
उन्होंने सूरज का खून चूसा तभी तो उनमें  प्रकाश है
  
मन के झिलमिलाते नमकीन सोते में हरापन कैसे कैद होगा
+
आसमान के सब चमकीले सूरजों को चाहिए कि वे स्याह ईर्ष्यालु मेघों से बच कर चलें
आखिर किस चोर दरवाजे से आती होगी वहाँ सूरज की ताज़ी रौशनी
+
मेघों के पास सूरज की रौशनी चूस कर चमकने वाली जोंकों की फ़ौज होती है
जिसमें छलकती झिलमिलाती होंगी दबी इच्छाओं की चंचल मछलियाँ
+
जो उनका साथ देने को रह-रह कर अपनी नुकीली धारदार हँसी माँजती है
बियाबान में टपकती बूंदों की लय क्या कोई संगीत बुन पाती होगी
+
  
नाज़ुक छुअन की सब स्मृतियाँ तरलता के चोर दरवाजे हैं
+
कुछ लोग दामिनीयों जैसे चमकते हुए उत्साह से तुम्हारे जीवन में आएंगे
बीता प्रेम अगर तोड़ भी जाए तब भी उसकी झंकार
+
स्याह मेघों की फ़ौज के हरकारे बनकर
दूर तक पीछा करती है पुकारते और लुभाते हुए
+
तुम दिखावटी चमक के इन शातिर नुमाइंदों से बचना
जैसे आप रस्ते पर आगे बढ़ जाएँ तब भी
+
ये थोड़े समय तक झूठे उत्साह के भुलावे देकर
इस आशा में कि शायद आप लौट ही पड़ें
+
तुम्हारे भीतर की सब रौशनी चूस लेंगे ।
सड़क पर दुकान लगाये दुकानदार आपको आवाज देते रहते हैं
+
 
+
धरती पर पड़ी शुष्क पपड़ी जैसे भंगुर होते हैं मन के निषेध – पत्र
+
कोई हल्के नोक से चोट करे तो पपड़ी टूट कर
+
अंकुर बोने जितनी नमी की गुंजाईश मिल ही जाती है
+
 
+
अगली बार झिलमिलाते जल के लिए
+
कोई यात्री आपके पाषाण अवरोधों का ध्वंस करे
+
तो यह मानना भी बुरा नहीं कि कुछ चोटें अच्छी भी होती है
+
सूरज रौशनी के तेज़ सरकंडों से अँधेरे काटता है
+
बादलों की लबालब थैली भी आखिर
+
गर्म हवा का स्पर्श पाकर ही फटती है 
+
जो सभ्यताएँ मुरझा जाती हैं
+
उन्हें आँख मटकाते बंजारे सरगर्मियाँ बख़्शते है
+
जंगलों की हरीतिमा अनावरण के  
+
संकट के बावजूद किसी चित्रकार की राह देखती है
+
 
+
पत्थरों के अंदर बीज नहीं  होते
+
लेकिन अगर वे बारिश में भींग गए हों
+
और वहाँ रोज धूप की जलन नहीं  पहुँच रही हो
+
तब वहाँ भी उग ही आती है काई की कोई हरीतिमा
+
 
</poem>
 
</poem>

13:36, 4 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

बेतरतीब टहनियों के बीच लटके मकड़ियों के उलझे जाल
आकाश की फुसफुसाहट है जंगल के कानों में
धरती पर बिखरी पेड़ों की उथली उलझी जड़ें
उन फुसफुसाहटों के ठोस जवाब में लगते धरती के कहकहे हैं

आकाश की फुसफुसाहटों में न उलझकर
चालाक मकड़ियाँ उस पर कुनबा संजोती हैं
जो तितलियाँ दूर तक उड़ने के उत्साह में
नज़दीक़ लटके जाले नहीं देख पाती
वे पंखों से चिपक जाने वाली
लिसलिसी कानाफूसियों से हारकर मर जाती हैं

धरती की हँसी को नियामत समझकर
विनम्र छोटे कीट वहाँ अपनी विरासत बोते हैं
लेकिन उन अड़ियल बारासिंघों को सींग फँसा कर मरना पड़ता हैं
जो हँसी के ढाँचे को अनदेखा करते हैं

(2)

स्मृतियों से हम उतने ही परिचित होते हैं
जितना अपने सबसे गहरे प्रेम की अनुभूतियों से
पौधे धूप देखकर अपनी शाखाओं की दिशा तय कर लेते हैं
प्रेम के समर्थन के लिए सुदूर अतीत में कहीं स्मृतियाँ
अपनी तहों में वाज़िब हेर-फेर कर लेती हैं

हम प्रेम करते हैं या स्मृतियाँ बनाते हैं
यह बड़ा उलझा सवाल है
तभी तो हम केवल उनसे प्रेम करते हैं
जिनकी स्मृतियाँ हमारे पास पहले से होती हैं
या जिनके साथ हम आसानी से स्मृतियाँ बना सकें

(3)

जाता हुआ सूरज सब कलरवों की पीठ पर छुरा घोंप जाता है
गोधूलि की बेला आसमान में बिखरा दिवस का रक्त अगर शाम है
तो रौशनी की मूर्च्छा को लोग रात कहते हैं

जब वह उनींदी लाल आँखें खोलता मैं उसे सुबह कहती थी
जब अनमनापन उसकी गहरी काली आँखों के तले से
नक्षत्र भरे आकाश तक फैलता मेरी रात होती थी

(4)

टहनियों के बीच टंगे मकड़ियों के जालों के
बीच की खाली जगह से जंगल की आँखें मुझे घूरती हैं
मेरे कन्धों के रोम किसी अशरीरी की उपस्थिति से
चिहुँककर बार-बार पीछे देखते हैं

उन्हें शांत रहने को कहती मैं खुद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखती
ऐसे मुझे हमेशा यह लगता रहता है कि वह मुझसे कुछ ही दूर
बस वहीं खड़ा है जहाँ मैंने अंतिम दफ़ा उसे विदा कहा था

प्रेम में उसका मेरे पास न होना
कभी उसकी उपस्थिति का विलोम नहीं हो पाया
मुझे लौटते देखती उसकी नज़र को
मैं अब भी आँचल और केशों के साथ कन्धों से लिपटा पाती हूँ

(5)

हरे लहलहाते जंगलों में लाल-भूरी धरती फोड़कर
उग आये सफ़ेद बूटे जैसे मशरूम
मकड़ी के सघन जालों के बीच की खाली जगह से गिर गए जंगल के नेत्र गोलक है

जंगल हमेशा मुझे अविश्वास से देखता है
जैसे वह मेरा छूट गया आदिम प्रेमी है
जो अधिकार न रखते हुए भी यह ज़रूर जानना चाहता है
कि इन दिनों मैं क्या कर रही हूँ

अविश्वासों के जंगल में मैंने उसे हमेशा
लौट आने के भरोसे के साथ खोया था
वह मेरे पास से हमेशा न लौटने के भरोसे के साथ गया

(6)

मेघों की साज़िश भरी गुफ्तगू को बारिश कहेंगे
तो सब दामिनीयों को आकाश में चिपकी जोंक मान लेना पड़ेगा
उन्होंने सूरज का खून चूसा तभी तो उनमें प्रकाश है

आसमान के सब चमकीले सूरजों को चाहिए कि वे स्याह ईर्ष्यालु मेघों से बच कर चलें
मेघों के पास सूरज की रौशनी चूस कर चमकने वाली जोंकों की फ़ौज होती है
जो उनका साथ देने को रह-रह कर अपनी नुकीली धारदार हँसी माँजती है

कुछ लोग दामिनीयों जैसे चमकते हुए उत्साह से तुम्हारे जीवन में आएंगे
स्याह मेघों की फ़ौज के हरकारे बनकर
तुम दिखावटी चमक के इन शातिर नुमाइंदों से बचना
ये थोड़े समय तक झूठे उत्साह के भुलावे देकर
तुम्हारे भीतर की सब रौशनी चूस लेंगे ।