भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दीप जलता रहे / मनोज जैन 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर' |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:11, 15 अक्टूबर 2017 का अवतरण
नेह के
ताप से ,
तम पिघलता रहे।
दीप जलता रहे।
शीश पर
सिंधुजा का
वरद हस्त हो।
आसुरी ,
शक्ति का,
हौसला पस्त हो।
लाभ-शुभ की,
घरों में,
बहुलता रहे।
दीप जलता रहे।
दृष्टि में
ज्ञान-विज्ञान,
का वास हो।
नैन में,
प्रीत का दर्श ,
उल्लास हो।
चक्र-समृद्धि का,
नित्य
चलता रहे।
दीप जलता रहे।
धान्य-धन,
सम्पदा,
नित्य बढ़ती रहे।
बेल यश,
की सदा
उर्ध्व चढ़ती रहे।
हर्ष से,
बल्लियों दिल,
उछलता रहे।
दीप जलता रहे।
हर कुटी
के लिए
एक संदीप हो।
प्रज्ज्वलित
प्रेम से,
प्रेम का दीप हो।
तोष ,
नीरोगता की,
प्रबलता रहे।
दीप जलता रहे।