भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रथ विकास का / मनोज जैन 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर' |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:42, 15 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

रथ विकास का
गाँव हमारे
आने वाला है।
अब भीखू की भूख ,
प्यास पुनिया
की जायेगी।
नहर हमारे गाँव,
खेत तक
चल कर आयेगी।
नेता,
फिर वादों की
फसल उगाने वाला है।

एक मित्र का
लगा मुखौटा
हमें लुभाता है।
सबकी दुखती रग पर
आकर
हाथ लगाता है।
रिश्ते अभी बनाकर
अभी
भुनाने वाला है।

लगे राम सा
किंतु चरित
रावण का जीता है।
मृग की छाल
ओढ़कर घर में
आया चीता है।
मांस नोच कर
जन-जन का
वह खाने वाला है।

राज पथों से
पग डंडी तक
यह जुड़ जाएगा।
तोते की मानिंद
हाथ से
फिर उड़ जाएगा।
जनमत
नेता जी के
पंख लगाने वाला है।