भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निरर्थक है / प्रीति 'अज्ञात'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रीति 'अज्ञात' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:15, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

निरर्थक है प्रमाणित सत्य को
अस्वीकारते हुए
करवट बदल सो जाना
निरर्थक है भावों को
शब्दों की माला पहनाते
आशंकित मन का
मध्य मार्ग ही
उनका गला घोंट देना
निरर्थक है बार-बार धिक्कारे हुए
शख़्स का
उसी चौखट पर मिन्नतें करना
निरर्थक है फेरी हुई आँखों से
स्नेह की उम्मीद
निरर्थक है बीच राह पलटकर
प्रारम्भ को फिर पा लेना
हाँ, सचमुच निरर्थक ही है
ह्रदय का मस्तिष्क से
अनजान बन जाने का हर आग्रह

ग़र समेटनी हों
स्मृतियों के अवशेष
टूटते स्वप्नों के साथ
विदा ही प्रत्युत्तर हो
हर मोड़ पर खड़े चेहरों का
और समझौता ही बनता रहे
गतिमान जीवन का एकमात्र पर्याय
तो फिर सार्थक क्या?
ये जीवन भी तो
जिया यूँ ही
निरर्थक!