"भीड़ / प्रीति 'अज्ञात'" के अवतरणों में अंतर
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भीड़ अब व्यथित नहीं
लज्जित भी नहीं
रोज ही औंधे मुँह
निर्वस्त्र पड़ी स्वतंत्रता भी
नहीं खींच पाती ध्यान
नहीं आता अब कलेजा मुँह को
उतारी जाती हैं तस्वीरें
'प्रथम' होने की होड़ में
ब्रेकिंग न्यूज़ में बार-बार
दिखेगा हर कोण
दुखद घटना जो हुई है
सो, आएँगी संवेदना भी
हर दल की, एक दूसरे पर
दोष मढ़ने की उत्सुकता लिए
इधर लुटती रहेगी अस्मिता
चादर के अंतहीन इंतज़ार में
उधर बिछेगी दरिंदगी सड़कों पर
सभ्यता और संस्कारों के
कई पुख़्ता सबूत मिलेंगे
नुचे जिस्मों से बहते लहू में
होगी जाँच, आक्रोशित चर्चा
क़ानून के खिलाफ
कुछ गुमनाम आवाज़ें उठेंगीं
निकलेगी रैली, होगा मौन,
शायद जलें मोमबत्तियाँ भी
सारे तमाशों के बाद
वही खून से सना अख़बार
बिछ जाएगा अलमारी में
सुनाई देते रहेंगें
अब और भी ऐसे
'आम' समाचार
'आम' जनता के
'आम' जनता के लिए,
बदबू मारती, वस्त्र-विहीन
बेहद घिनौनी
एक और लहूलुहान लाश
हर रोज ही मिलेगी
अपने इस विकृत प्रजातंत्र की
अपने ही बनाए किसी चौराहे पर