भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इक बार / प्रीति समकित सुराना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रीति समकित सुराना |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:51, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

कभी इक बार फिर से साथ मेरे गुनगुनाओगे,
अधूरी रह गई जो धुन उसी पर गीत गाओगे।

कभी सोचा नहीं इतना कठिन जीवन सफर होगा,
वही फिर याद आएगा जिसे ज्यादा भुलाओगे।

बहाने रोज करते हो नजर मुझसे चुराते हो,
नहीं लगता मुझे ऐसा कभी तुम पास आओगे।

रही दिल में हमेशा ये कसक सी आज तक मेरे,
जताओगे कभी तुम प्रेम या यूं ही छुपाओगे।

चलो फिर साथ चलते है वहाँ यादें जहाँ छूटी,
करुं कैसे भरोसा चाहतें मुझसे निभाओगे।

समझना ही न चाहे दिल भला टोके इसे कैसे,
बहेगी प्रीत की नदियाँ नही तुम रोक पाओगे।

रही मैं प्रेम की प्यासी कभी कुछ और कब माँगा,
कभी तुम प्रीत' दोगे या सदा यूं ही सताओगे।