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"लड़की / जय चक्रवर्ती" के अवतरणों में अंतर

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16:45, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

घर से कॉलेज बस मे
करती रोज़ सफर लड़की
 
पंख हौसलों मे
आँखों मे
बीज उम्मीदों के
कदम-कदम पर
नसीहतें
कोड़े ताकीदों के
सबको लेकर रखती सब पर
रोज नज़र लड़की

व्यंग्य, फब्तियाँ ,
छेड़-छाड़
ज़हरीली फुफकारें
भूखी –प्यासी
हत्यारी
नज़रों की तलवारें
एक साथ लाखों विषधर
ढोती तन पर लड़की

रुकें न उसके कदम
उसे
मंज़िल तक जाना है
अपने होने का
जग को
एहसास कराना है
इसीलिए सब सहकार
चुप रहती अक्सर लड़की