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"सगुनपाखी रहा हमको टेर / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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21:50, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

सुबह की
इस धूप में
बैठें चलो कुछ देर, सजनी

रच रही वह पेड़ पर
अचरज सुनहले
उसे देखें
बसे भीतर जो सगे ऋतुपर्व पहले
उन्हें लेखें
 
मत पढो
अख़बार में
जो हो रहे अंधेर, सजनी
 
घास पर ऋतु ने बिछाये
इंद्रधनुषी ओस के कण
आओ, बाँचें
उन्हीं में हम
इस मिठायी देह के प्रण
 
कुछ पुरानी
नेह-छवियाँ
रहीं हमको घेर, सजनी
 
खुशबुएँ होतीं हवाएँ
साँस में उनको संजोएँ
थकी-हारी आँख में फिर
नेह-ऋतु के बीज बोएँ
 
सगुनपाखी
सुनो, कब से
रहा हमको टेर, सजनी