भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सखी, खास है / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:59, 30 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

सखी, खास है
जनम-जनम की यह मिठास है

हम-तुम कितनी बार
इसी तट पर आये हैं
इस काया में
कितनी यादों के साये हैं

बहुत पुराना
सखी, देह का यह लिबास है

इस रेती पर
हमने रितु के गान लिखे हैं
उनमें हमको
अनगिन सूरज-चाँद दिखे हैं
   
हमने सिरजा
घने अंधेरे में उजास है

कल बीते हम नहीं रहेंगे
नेह रहेगा
वही हमारी इस मिठास की
साखी देगा

कभी न मरता
फूलों का जो महारास है