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"भजन-कीर्तन: राम / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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10:48, 2 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

प्रसंग:

भक्त कवि भिखारी की भगवान राम से प्रार्थना।

बेड़ा पार लगा द राम!टेक।
एह पापी का कवन पुण्य से भइल चहुँ दिसि नाम।
भजन-भाव के हाल ना जनलीं, सब से ठगलीं दाम। बेड़ा...
आठ पहर सन्तावत मोहि के लोभ-मोह-मद-काम,
पाकल केस, नाम बिनु काया, कंचन भइलन खाम। बेड़ा...
नाहक जनम भइल मानुस के, हाड़, मांस ओ चाम,
नाम जपत में आलस लागत, कृपा करहु सुखधाम। बेड़ा...
बस में नइखीं कलह-काँट के मुख में चढ़ल लगाम,
त्राहि-त्राहि करुणानिधान! सुनऽ, रटत ‘भिखारी’ हजाम। बेड़ा...

दोहा:

सी कहे सिद्ध होता है, ‘ता’ कहे तर जाय;
‘रा’ कहे राहता धरे ‘म’ कहे ममिला बन जाय।

वार्तिक:

‘सी’ के काम आत्मा के सिद्ध कर देलन। ‘ता’ के काम तार देलन। ‘राम’ के काम ह राहता धरा देलन, ‘म’ के काम ह अपना में मिला। ‘र’ आमर’, सेतो विष्णु ‘आकर’ सतो विष्णु ‘मकार’ महादेव जी, ‘इ’ मिल के (ऊँ) शब्द हवन।

वार्तिक:

भिखारी ठाकुर राम नाम की ओर प्रवृत्त होते हैं और अब तक अपने आलस्य के प्रति अपनी सफाई देते हैं।

लगनियाँ, लगनियाँ, लगलियाँ,
कहिया लगिहन सीताराम में लगनियाँ?टेक।
कुछ दिन बीति गइले करत सनियाँ-पनियाँ,
कुछ दिन बीतल छूरा-कइंची-नहरनियाँ। लगनियाँ...
गाँवा-गाईं जाईं, खाई चिट्ठी नेवतत खनियाँ,
लिखे के सिखवलन भगवान दास बनियाँ। लगनियाँ...
रहे के परत नइखे जनम-असथनियाँ,
नगद-नारायन चाहीं रोपेया-अठनियाँ। लगनियाँ...
कहत ‘भिखारी’ हम ना हाउई नचनियाँ,
नचवे में रहिकर कहीला कहनियाँ। लगनियाँ...
राम-राम कहऽ मन! लागल बाटे चोरवा।
चारो ओर से घेरी तब जइबऽ कवना ओरवा?
राम राम कह मन मन! लागल बाटे चोरवा।टेक।
राम राम कह मन लागल बाटे चोरवा
धन पाके नाचत बाड़ऽ जइसे थिरके मोरवा।
अन नाहीं पची तन होइहन कमजोरवा। राम-राम कहऽ मन
मने-मने गाजत बाड़ भइलीं लरको रवा,
बबुआ के बोली लागी पथल से कठोरवा। राम-राम...।
चार दिन के सेखी बा, तब होखत टिपोरवा।
नाम ना पोंछाई, नेटा गिरीहन ताबर तोरवा। राम-राम...।
देखत बाड़ रोजे तबहूँ परत बाटे भोरवा
बहु ते कमा के कइलऽ लहँगा-पटोरवा।
आधा पेट दाना दी पतोह बजा के ठोरवा। राम-राम कहऽ मन
परल-परल आँखि से झरत रही लोरवा।
कहत ‘भिखारी’ नाई टूट जाई डोरावा। राम-राम कहऽ कन

वार्तिक:

सीता कहके हमनी का राम कहीला सीता अपना हृदय में के मानसरोबर में रकार।आकार मकार हंस के रखली। माता कह के हमनी के पिता कहील। माता अपना हृदय कें मानसरोवर में अपना पति के हंस समान राखेली। जानानी वास्ते एकहीं धर्मव्रत नेम हवन-पति के पद में नेह रखना! चार अच्छर सीताराम। बहुत देश बाड़न जहाँ सीता राम के अवतार जानऽ। सभ देश वास्ते मालूम चार अक्षर। माता-पिता दस्तावेज दु गो रहलन। एक अदालत में रहलन से निरगुन हवन। घरे-घरे से सगुण हवन। सीताराम त्रेता में रहलन हा लोग। निर्गुन सीता राम में विश्वास। ना तब सर्गुणमाता-पिता हमेसा लागल रहऽ। शुरू में ई पढ़ाई होखत रहल हा-रामागति देहु सुमती। अब ई ना पढ़ाई होखे। वोजह आपन दौलत केहू बतावे ना। काहे से जे इ रतन मोहड़ा पर परत रहलन हा। ‘राम’ शब्द लिखला पढ़ला से सुन्दर गति होला। देहु सुमति मांगल जाइल। एह नाम पर सतयुग में कुमत भइल बा। हिरणकश्यप प्रहलाद के दुःख देले बाड़न। अब पढ़ाई होखेला क ख ग घ ङ़। करब तइसन खाइब। गति पा जइब घ घरहीं रहके उ जवन सईंत के धइले बाड़ राम गति तेकरा के सुरता में रखबऽ, तब इहे नाम हवन। मर गइला पर लो कहेला मुर्दा ले जात खानी-राम नाम सत है।

चौपाई

शुरू आखिर में सुरता चाहीं। बीता बाहर भीतर माहीं।

वार्तिक:

खत लिखल जाला। सरस्वती व्रती सर्ब उपमाजोग गउ ब्राह्मण के रक्षपालक, मतलब सो चीज उहे हवन जेह से सब काम बन जाला। उहे चीज हवन तीन-रकार, आकार, मकार रकार ब्रह्मा, आकर विष्णु, मकार महादेव जी। कहल जाला लक्ष्मी का हृदय के मानसरोबर मन के हँस रुपी रकार, आकर, माकार, वास करेलन। अतने में सब उपमा देवे जोग हो गइलन, तब हमनी का लिखीला गउ, ब्राह्मण के रक्षा पालक, सतयुग में गौ-ब्राह्मण साधु देवता का दुःख रहल हा, चौपाई से मालूम होला।

चौपाई

जेहिं-जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं। नगर गाउँ पुर आग लागवहिं॥बा.का. 182/8॥

वार्तिक:

राम अवतार भइला का बाद के छन्द

दोहा

गो द्विज हित लागी, जन अनुरागी, प्रगट भये श्रीकंता।
विप्र-धेनु-सुर-संत हित, लिन्ह मनुज अवतार॥
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार रा.म.बा.क. ॥बा.का 182/8॥

प्रसंग:

राम नाम की महिमा का बोध कराया गया है।

राम नाम करऽ सुमिरनवाँ, ए हमार मनवाँ।
निरगुन-सगुन के सुनी लऽ बखानवाँ, ए हमार मनवाँ,
हउअन दसरथ के ललनवाँ, ए हमार मनवाँ!
नाम के महातम के जानत बा जहानवाँ, ए हमार मनवाँ,
बा गनेस के बन्दवाँ, ए हमार मनवाँ!
बाल्मीकि दास कइले ग्रंथ के रचनवाँ, ए हमार मनवाँ,
नाम परथम परधानवाँ, ए हमार मनवाँ!
नाम के सबद परल-कबीर का कानवा, ए हमार मनवाँ,
नाम नाम हउअन नाहिं आनवाँ, ए हमार मनवाँ !
लूटि लेहु दास तुलसी जी के खजानावाँ, ए हमार मनवाँ,
अतने के बाटे तरसनवाँ, ए हमार मनवाँ!
सादा-सादी कहऽ चाहे गाना का बहानावाँ, ए हमार मनवाँ,
कसहूँ पुकारऽ हर छनवाँ, ए हमार मनवाँ!
नाम भजला से कटि जाला जम-फनवा, ए हमार मनवाँ,
होइ जालन पतित पावनवाँ, ए हमार मनवाँ!
भाग जागल मिलल बाटे मानुस के तनवाँ, ए हमार मनवाँ,
कइ देत बाड़ऽ नोकसानवाँ, ए हमार मनवाँ!
लाख चउरासी में भरमि के परानवाँ, ए हमार मनवाँ,
भइल बाड़ऽ बहुत हरानवाँ, ए हमार मनवाँ!
कहत ‘भिखारी’ नाई झूठहूँ के सानवाँ, ए हमार मनवाँ
कइले बाड़ कवना कारनवाँ, ए हमार मनवाँ!

जपन करऽ राम नाम मन! माला।टेक।

राम-राम कहऽ बइठत-उठत में, ऊँचा चढ़त चाहे खाला। जपन करऽ ...
गनिका-गीध राम-पद भजि के, भइलन परम निहाला। जपन करऽ ...
तीन काल, तिहु लोक, चारि जुग रामे-राम गवाला। जपन करऽ ...
राम नाम हरि पाये परम पद बाल्मीकि दास भाला। जपन करऽ ...
खेल में राम, रेल में रामे, सउदा जहाँ बिकाला। जपन करऽ ...
अंत समय ‘सत राम’ पुकारत लोग मुरदा लेले जाला। जपन करऽ ...
राम-राम कहऽ चाम के जिभिया भोजन जइसे घोंटाला। जपन करऽ ...
ओसहीं जम के दूत खोजत नित, जब परबऽ कहूँ पाला। जपन करऽ ...
गाँछ में राम, डाढ़-पातन में फूल-फल में राम कृपाला। जपन करऽ ...
ब्रत-तीरथ पूजा में रामें, रामें बदरी बिसाला। जपन करऽ ...
रामे अबीर, राम के अबरख, रामे पान-मसाला। जपन करऽ ...
राम के धोती, कुरता, टोपी रामे साल-दोसाला। जपन करऽ ...
रामे के लकड़ी, रामे के धूँई, रामे अगिनि ज्वाला। जपन करऽ ...
रामे कमंडल, रामे गंगाजल, रामे नाम मृगछाला। जपन करऽ ...
रामे दाम, मोकाम, काम सब, रामे हीरा-मोती-लाला। जपन करऽ ...
रामे मकान, केवाड़, जंजीरा, रामे पूँजी, कुंजी, ताला। जपन करऽ ...
रामे नाम धरती-परबत में, सरिता-सागर-नाला। जपन करऽ ...
राम नाम कहला से सुनीला होखत मूक बाचाला। जपन करऽ ...
रामे जात-जमात मातु-पितु, राम बोलनेवाला। जपन करऽ ...
कहत ‘भिखारी’ राम पद भजि लऽ, हमरा ईहे बुझाला। जपन करऽ ...

प्रसंग:

राम नाम की महिमा बताना।

राम रस पीअऽ मन! सजीवन मूरी।टेक।
धन-प्रेमी-परिवार छुटिहन जरुरी, ओही घरी परि जाई करे के सबूरी। राम-रस ...
नर-तन पाइ के हो गइलऽ भरपूरी, सगरो खोजत बाड़ऽ घूमि कर दूरी। राम-रस ...
भरमत-भरमत भइलऽ सकेनाचूरी, मिरिगाका साथ ही रहत कस्तूरी। राम-रस ...
कहत ‘भिखारीदास’ घर ह कुतूपुरी, नाई बंस हई हम कानकुब्ज कूरी। राम-रस ...

प्रसंग:

राम नाम जपने की राय देना।

लाख चउरासी भरमे के परी जाइके। टेक।
राम नाम कहऽ मन! नित चित लाइके;
लाख चउरासी भरमे के परी जाइके। लाख...
कागजी गरुड़जी से कहलन गाइके;
नाहक में काइ करबऽ दिनवाँ बिताइ के? लाख ...
सुनऽ सरगुन मत मतलब पाइके;
पतित पावन नाम हउअन रघुराई के। लाख ...
सोरठा बिलोकऽ, दोहा, छन्द, चउपाइ के;
मतलब सोचि-सोचि रहऽ हरखाइ के। लाख ...
कहे के गरज बा ‘भिखारी ठाकुर’ नाई के;
ना त जमदूत घेरिहन बाट आइके। लाख ...

पिअऽ राम नाम रस घोरी, ए मन! इहे अरज बा मोरी।
कउड़ी-कउड़ी माल बटोरलऽ, कइलऽ लाख-कड़ोरी
दाया-सत्त हृदय में नइखे, गला कटाइल तोरी। ए मन ...
सपरत बीति गइल चउथापन लागी तिरिथ में डोरी;
लालच में एको ना कइलऽ देह भइल कमजोरी। ए मन ...
चीकन देह, नेह ना हरि से, माई-बाप से चोरी;
बंका तन लंका अस जरिहन, कुत्ता मांस निचोरी। ए मन ...
बहुत बनवलऽ घर के खिल्लत, कंठा, अंचरी-मनोरी,
अबहूँ से चेतऽ कहत ‘भिखारी’ रघुबर सरन गहो री। ए मन ...

प्रसंग:

शरीर के सभी अंगों पर ‘राम’ नाम गोदवाने के लिए परामर्श, ताकि जब नजर पड़े, उसी ‘राम’ पर।

सिरी सीताराम नाम लिखऽ कारीगरवा!टेक।
जीभ, दाँत, ओठ, गाल, पहिले लिलारवा;
नाक, कान, भँहूँ पर, पपनी नजरवा। सिरी सीताराम...
गरदन में, छाती पर, दाढ़ी का भीतरवा,
झटपट लिखि घालऽ एही अवसरवा। सिरी सीताराम ....
बाँह पर, जाँघ पर, ठेहुना उपरवा, लबदर,
फीली पर, परे ना कसरवा। सिरी सीताराम ...
हाड़-माँस, रोंआँ-रोंआँ, गत्तर-गत्तरवा;
कहत ‘भिखारीदास’ अतने अछरवा। सिरी सीताराम...

चालो! भजहु राम चित लाई।टेक
जलचर, बनचर, नभचर मारत, गोला, भाला चलाई।
अड़बड़ लोहा परल कलह से, मति बइठहु कदराई। चोला...
दाया दल के खबरदार करि, घेरहु कटक बनाई।
चढ़ि संतोस घोड़ा का उपर ऊड़हु एड़ा लगाई। चोला...
लालच लपटत छन-छन मन पर, पकड़ी त दिही मुआई।
सत के तीर सांति के धनुही, मारहु सीप चुआई। चोला...
कहत ‘भिखारी’ जाति के नाई, कनउजिया कहलाई।
मेहनत पइसा खरच ना लगी, सहजे बिजय होइ जाई। चोला...

प्रसंग:

सांसारिकता में फँसे मानव को राम-भजन करने की सलाह।

राम कहऽ, राम कहऽ, राम कहऽ मनवाँ!
माटी में मिलि जइहन तेल के अबटल तनवाँ॥ राम कहऽ.
सुतला से उठिकर गइलऽ पयखनावाँ,
मुँहवाँ हुराये लागल लके दतुअनवाँ। राम कहऽ.
मिसिरी-मरिच फैदा करी होता जलपानवाँ।
घरी भर के खेल बाटे बनत बा भोजनवाँ। राम कहऽ.
चाभत बाड़ घीव-दूध, पाकल पाता पानवाँ,
दाना भर दाया नइखे, बनल ना भजनवाँ। ऽराम कहऽ.
सेखी से भरल बाड़ऽ हईं मरदानावाँ,
तोपि के भेजावल जइबऽ घाट पर मसानवाँ। राम कहऽ.
कहत ‘भिखारी’ माया धइलस गरदनवां।
राम कहऽ राम कहऽ; राम कहऽ मनवाँ। राम कहऽ

प्रसंग:

हर क्षण-राम-राम’ कहने का परामर्श।

राम-राम-राम कहऽ, राम-राम-राम।टेक।
राम-राम भोर कहऽ, राम-राम साम। राम-साम बाहर बजे, तीन गो मोकाम॥ राम-राम...
राम-राम चलत में, खड़ा में राम। राम-राम बइठत में, होके निसकाम॥ राम-राम...
स्वाँसा में राम-राम, सुतला में राम। राम-राम रोज कहनाम॥ राम-राम...
राम-राम-राम कहऽ राम-राम-राम। राम कहत ‘भिखारी’ हजाम॥ राम-राम...

प्रसंग:

सांसारिक माया-मोह में फँसे मानव को ‘राम-राम’ जपने का परामर्श।

राम कहऽ राम कहऽ राम कहऽ राम। एही तोहरा बाटे मन! निसि दिन-कामा॥ राम-कहऽ...
नाही लगी मेहनत, नाहीं लागी दामा। जगत में मूल बा रतन हरिनामा॥ राम-कहऽ...
भाई-भउजाई, महतारी-बाप, बामा। देखि के भुलाइल बाड़ अन-धन-धामा॥ राम-कहऽ...
जम-दूत करिहन हाथ-गोड़ लामा। मिलि जइहन माटी में सुनर तन चामा। राम-कहऽ...
गंगा-सरजुग बीच कुतूपुर नामा है ग्रामा। कहत ‘भिखारी ठाकुर’ जाति के हजामा। राम-कहऽ...

प्रसंग:

तत्काल ‘राम-राम’ कहने के लिए परामर्श, क्योंकि अगले क्षण क्या हो जायेगा, इसको कोई नहीं जानता।

राम-राम कहऽ मन! एही अवसर में।टेक।
राम-राम कहऽ मन! चलत डगर में। राम-राम कहऽ मन! एही अवसर में॥
झुठहूँ के भूलऽ मत कुरुता-चदर में। राम-राम कहऽ मन! एही अवसर में॥
ना जानी जे का होइहें घरी-पहर में। राम-राम कहऽ मन! एही अवसर में॥
कहत ‘भिखारी’ रामजी के परिकरमें। राम-राम कहऽ मन! एही अवसर में॥

प्रसंग:

राम नाम जपने के लिए सभी अंगों तथा स्थानों में परामर्श।

भजऽ राम-राम, राम-राम, सिया-राम-राम।टेक।
राम कहऽ हाड़-माँस! राम कहऽ चाम! राम कहऽ दिन-रात, राम सुबह-साम॥भज.।
राम कहऽ घर बाहर, ठौर-ठौर धाम। राम कहऽ जहाँ-जहाँ जइबऽ तमाम॥भज.।
राम-राम-राम कहऽ राम-राम-राम। अइसन किराना के कुछ नइखे दाम॥भज.।
राम-राम भजऽ नित्य, तजऽ बुरा काम। कहत ‘भिखारी’ धरऽ ठीक से लगाम॥भज.।

प्रसंग:

राम नाम का जप करने का परामर्श।

राम-राम-राम कहऽ नित चित लाइ के।टेक।
सरजुग-गंगा चाहे ज्ञान में नहाइके। राम-राम-राम कहऽ नित चित लाइके॥
तुलसी के माला, गाला चन्दन लगाइ के। राम-राम-राम कहऽ नित चित लाइके॥
द्वारिका में जाके आवऽ बाँह छपवाइ के। राम-राम-राम कहऽ नित चित लाइके॥
कहत ‘भिखारी’ नाई कीर्तन में गाइ के। राम-राम-राम कहऽ नित चित लाइके॥

प्रसंग:

सभी स्थितियों में ‘राम-राम’ का स्मरण एवं उच्चारण करने की राय।

राम-राम-राम कहऽ राम-राम-राम।टेक।
मन-मन में राम-राम, चन-चन में राम। छन-छन मेंराम-राम, बन-बन में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
चहकन में राम-राम, बहकन में राम। डहकत में राम-राम, सहकत में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
उनत में राम-राम सुन्नत में राम। गूनत में चुनत में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
आसा में राम-राम, स्वाँसा में राम। बासा तमासा में, चासा में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
ओजन में राम-राम, भोजन में राम। कवनो परोजन-कमोजन में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
राम-राम जाति, जमाती में राम। राम-राम गाती-बजाती में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
राम-राम डोली में, होली में राम। बोली-ठिठोली में, लोली में राम॥ राम-राम-राम कहऽ
तोरत में राम-राम, जोरत में राम। कहत ‘भिखारी’ हलोरत तमाम राम॥ राम-राम-राम कहऽ

प्रसंग:

जन्म से लेकर अब तक राम-भजन नहीं करने का बयान करते हुए आसन्न बुढ़ापा का स्मरण कराकर राम-नाम का स्मरण करने का परामर्श।

दिनवाँ नगिचाइल, ए मनवाँ तोरा।टेक।
बालकपन अनहोस में बीतल, खेलत चढ़ि के कोरा।
लरिकन सँग में धूम मचवलऽ, भूँजा बान्हिके झोरा॥ दिनवाँ...
चढ़ल जवानी देस-बिदेसे, चँइयाँ परल बा चोरा।
ममिला खातिर धावल फिरलऽ, घर-घर करत निहोरा॥ दिनवाँ...
बूढ़ भइल पर काँपन लगबऽ, तन होइहन जब कमजोरा।
दुखवा कहि-कहि रोवत रहबऽ, केहू ना सुनिहन तोरा॥ दिनवाँ...
कहत ‘भिखारी’ राम सुमिर लऽ, परे ना पावे भोरा।
तनीआका हावा लागी, टूटि जइहन कहिओ डोरा॥ दिनवाँ...

प्रसंग:

विभिन्न पूर्ववर्ती साधकों का हवाला देते हुए कवि ने राम-नाम जपने का आग्रह किया है।

राम सुमिरऽ, राम सुमिरऽ राम सुमिरऽ भाई नर तन के राम नाम लाखन दवाई॥
राम नाम गनिका सुग्गा के पढ़ाई। राम नाम जपलन अजामिल कसाई॥ राम सुमिर...
राम कहि के नारद जी बीना बजाई। सिरी गनेसाय नमः परथम पुजाई॥ राम सुमिर...
राम नाम कहि प्रहलाद चित लाई। प्रगटे नरसिंह अवतार होइ जाई॥ राम सुमिर...
राम कथा काग जी गरूड़ जी से गाई। एक अमर, एक बैकुंठ चलि जाई। राम-सुमिर...
राम नाम काम तरु किरतन में छाईं। राम कहऽ कहत ‘भिखारीदास’ नाई॥ राम सुमिर...

प्रसंग:

मनुष्य यह देखकर आश्चर्य में है कि मानव-शरीर का निर्माण किस प्रकार किसने किया। उसी कारण उस नियन्ता के प्रति-प्रणति आवश्यक है।

सोचत-सोचत बीतत बाटे दिन-रात-भिनुसारवा।
केइए बनावल कइसे कायापुर सहारवा॥
कहँवाँ अइसन माटी मिलल, पानी के पवनारवा?
अगिनि, आकास, पवन के कावन जगह बाटे जरवा?
जगमग नगरवा में देखीला नव गो दुआरवा।
एक उपर पर एकऊ नइखन फाटक पहरदारवा॥
रतन के जतन कइके जोगवलनि योगवनिहारवा।
तेकरा पर लागल बहुत ठग-बटारवा॥
हमरा आधार बाड़न राम नाम अछरवा।
होखत बा प्रनाम ‘भिखारी’ के सौ लाख बार हजारवा॥

प्रसंग:

जवानी में अपने काम के कारण राम-राम स्मरण नहीं होता? किंतु बुढ़ापा आते ही पश्चाताप होता है। इसलिए हमेशा राम नाम याद करना चाहिए।

राम कहऽ, राम कहऽ, राम कहऽ चोला! सीता, गउरी, गनपति जयऽ बम-बम भोला॥
सुन्दर पवलऽ तन, धन जनम अनमोला। पेट में पाखंड बाटे पोला-के-पोला॥ राम कहऽ...
गोवलऽ कवित्त, गीत, छन्द, चौबोला। नाच में करत बाड़ ठाट से ठठोला॥ राम कहऽ...
थाकि जाई देह, चाम होई ढकढोला। नाँव परी दोसर पुकार के ‘भकोला’॥ राम कहऽ...
कहत ‘भिखारी’ माया धइलसि नकलोला। नाथि के घुमावत बाटे कुतुपुर का टोला॥ राम कहऽ...

प्रसंग:

जब घर-घर में चरखा के चलाना रहे जेह पर सुत कतइला का बाद ‘परेता’ पर लपेटि के लमहर लच्छा बना के बाजार में बिकिरी खातिर धरात-बटोरात रहे। जइसे दोसरा जगह ‘तिनकाल सवइया’ में बा-”सूत के पोला सिकहुती में लेकर बेचन के चलली महतारी“।

प्रसंग:

किसी भी आयु के वर्ग में राम-नाम का अपना महत्त्व है। इसे बुढ़ापा के लिए टालना उचित नहीं।

राम कहऽ, राम कहऽ, मन बयपारी। देखत बाड़ऽ हाथी-घोड़ा, जगह-जिमिदारी॥ राम कहऽ...
पहिले से चेत करके रहऽ खबरदारी। बहुत ठग लागल बाटे, होई बटमारी॥ राम कहऽ...
आई बृद्धपन, छूटी राम-राम हारी। भोजन का बेरा रोज होई तकरारी॥
(बुद्धपन होई तन बेटा के नारी। बाँबाँ हाथे ठेल दी अन्हारवा घर में थारी॥ राम कहऽ...
नगद माल कीनत बाड़ऽ देखे के उधारी। खाली हाथ परी, रोअबऽ छाती मूक्का मारी॥ राम कहऽ...
‘रामनाम सत’ होई अंत में पुकारी। कहत ‘भिखारी’ लेबऽ राहता सिधारी॥ राम कहऽ...

प्रसंग:

महात्मा कबीरदास की तरह ही लोकप्रिय मनुष्य की सांसारिकता की व्यर्थता बताकर राम नाम का जप करने के लिए भय दिखा रहा है। उपमा की छटा द्रष्टव्य है।

राम कहऽ, राम कहऽ, मन मुँहचोरवा!
आई जब नियार तब गिरावे लगबऽ लोरवा॥ राम कहऽ...
लालच के पहिरले बाड़ऽ लहँगा-पटोरवा।
रूप देखि के भूलल बाड़ऽ काला-साँवर-गोरवा॥ राम कहऽ...
चढ़ि के चलब डोली पर मसान घाट ओरवा।
होलिया फँकाई, उठी आगि के धँधोरवा॥ राम कहऽ...
ससुरा में सँइयाँ बाड़न अजब कठोरवा।
देबऽ का जवाब जब करिहें झकझोरवा॥ राम कहऽ...
कहत ‘भिखारी’ बानी करत निहोरवा।
पाछे पछतइबऽ जब करबऽ जोर-सोरवा॥ राम कहऽ...

वार्तिक:

एगो गुनी वेश्या कहीं जात रहीं। देखली कि पंडीजी कथा बाँचतारन। वेश्या पंडीजी से कहली-‘हमार तरन कइसे होई?’ पंडीजी बतवनीं कि सोना के पिंजरा में काठ के सुगना के ‘राम-राम’ पढ़इह। वेश्या घर पर लवट के अइली। पंडितजी का कहनाम से सोना के पिंजड़ा बना के ओह में काठ के सूगा राख देली। ऊ लगली ‘राम-राम’ रोज पढ़ावे। धीरे-धीरे गाँव नगर जान गइल। लोग कहे लागल कि ई सनकल बिया कि काठ के सुग्गा कहीं बोली। चारों ओर के लोग के बात सुन के ऊ मन से सोचली आ रात में सुन्दर से बर-बिछावन क के पिंजड़ा राख देली। हाथ में छुरी लेके-सुगा के ‘राम-राम’ पढ़ावे लगली। प्रन ठान लेली कि आज सुग्गा ना बोली, त भोर होत आपन जान एही चाकू से लेबऽ। भोर होते जइसे गरदन के पास छूरी ले गइली, तबले सुग्गा ‘राम-राम’ बोल उठल।

राम कहऽ, राम कहऽ, राम कहऽ सुगवा!टेक।
राम कहऽ राम कहऽ राम कहऽ सुगवा! नाहीं त टँगात बाटे सगरो से लुगवा॥ राम कह.
राम कहऽ राम कहऽ राम कहऽ सुगवा! कबहूँ पुजलीं हाँ गोरेया-दुरुगवा॥ राम कह.
राम कहऽ राम कहऽ राम कहऽ सुगवा! होत बा बिहान बोले लागल मुरुगवा॥ राम कह.
राम कहऽ राम कह, राम कहऽ सुगवा! कहत ‘भिखारी’ आजु हउवन कलजुगवा॥ राम कह.

प्रसंग:

मनुष्य का जीवन अनिश्चित है। ‘राम-नाम-जप’ के प्रभाव से ही स्वर्गादि की उपलब्धि हो सकती है।

राम कहऽ, राम कहऽ मन मतवालावा।
आठो पहर घेरले बाटे सिर पर कालावा॥ राम कहऽ...
कीनि के खालऽ दही-चिउरा, रोटी-भात-दालावा।
बिना दाम राम भजऽ कवन बा अकालावा? राम कहऽ...
क्रोध, लोभ, मद हउवे नरक के नालावा।
ओही में गिरावत बाटे धरती के जलवा॥ राम कहऽ...
पोसत बाड़ऽ देह, बरछी भाँजत बाड़ऽ भालावा।
हिस्सा खातिर बाजत बाटे झगरा के झालावा॥ राम कहऽ...
कहत ‘भिखारी’ जइबऽ सरग पतालावा।
नाम चाभी राखऽ, खुली सगरो के तालावा। राम कहऽ...

प्रसंग:

लोककलाकार अपने को केन्द्र में रखकर अपने सांसारिक कर्मों की भर्त्सना करते हुए ‘राम नाम’ के स्मरण का संकल्प करता है। मन को यात्री कहा गया है।

राम कहऽ, राम कहऽ, मन सैलनियाँ। राम पद छोड़ि के भइलऽ झूठो के नचनियाँ। राम कहऽ.
छोड़ि देलऽ छूरा, कँइची, लोहखर, नहरनियाँ। चीठीनेवते का बेरी होखली हरनियाँ॥ राम कहऽ.
आठो घड़ी छोड़त बाड़ऽ मुसुकी-अठनियाँ। करे के परत बाटे गते बयमनियाँ॥ राम कहऽ.
राम कहऽ घर-बन, खेत-खरिहनियाँ। काम, क्रोध, लोभ छोड़ऽ छैला-चिकनियाँ॥ राम कहऽ.
गंगा-सरजुग बीचे कुतुबपुर मकनियाँ। नाम हऽ ‘भिखारी’ नाऊ सब के पवनियाँ॥ राम कहऽ.

प्रसंग:

अक्सर युवावस्था में राम-नाम विस्मृत रहता है और मानव भौतिकता में लगा रहता है। कवि उन्हें सावधान करना चाहता है कि वे धर्म को न छोड़ें।

राम कहऽ, राम कहऽ, मन दगाबाजावा!
बनल बा जवानी तबले करत बाड़ऽ माजावा॥ राम कहऽ.
घरे कलपत बाटे माई-बाप आजावा।
बाहारा निकलि कर भइलऽ फैलबाजवा। राम कहऽ.
पोसल-पालल तेकर नइखे तनिको गरजवा।
आजले सधवलऽ नाहीं दूध के करजवा॥ राम कहऽ.
थाकाला पर दाँत से ना टूटी नरम खाजाव।
लरिका बजा के भागी थपरी के बाजावा॥ राम कहऽ.
दाया, सत, सांति हउए धरम धाजावा।
ईहे लेके राम भजऽ, बीतत बा अकाजावा॥ राम कहऽ.
गावत ‘भिखारी’ नाया गीत के तरजवा।
सब केहू हँसत बाटे, लागत नइखे लाजावा॥ राम कहऽ.

प्रसंग:

राम नाम की पराति गाने के लिए कवि का आह्वान।

राम-राम बोलऽ, बिहान भइल तोता!टेक।
भोजन-सयन करत निसि बीतल, कब ले लुकइबऽ अलोता? बिहान भइल...
गंगा किनार पर भीर भइल बा, सब कह मारत गोता। बिहान भइल...
फूल-बेल-पत्र सहित जल ढरकत, ‘हर-हर बम-बम’ होता। बिहान भइल...
कहत ‘भिखारी’ निगम होइ गइलऽ, बोलऽ ना त बनि जा सरोता। बिहान भइल...

प्रसंग:

किसी भी स्थिति तथा स्थान में ‘राम-राम’ का जाप करने का परामर्श।

राम-राम राम-राम राम-राम रटना। राम-राम राम-राम राम-राम रटना।
राम-राम कहि के ऊदम में खटना। राम-राम राम-राम राम-राम रटना॥
छपरा में रहऽ चाहे आरे चाहे पटना। राम-राम राम-राम राम-राम रटना॥
राम-राम चटनी से सब कुछ चटना। राम-राम राम-राम रटना॥
कहत ‘भिखारी’ राम नाम से न हटना। राम-राम राम-राम राम-राम रटना॥

प्रसंग:

लोककवि का विश्वास है कि राम नाम जपने से आवागमन समाप्त हो जाता है और विवेक बढ़ जाता है।

राम-राम राम-राम राखा नाम जपना।
राम नाम कहला से छुटिहन भव-सिन्धु के कलपना॥ राम-राम जपना।
राम नाम कहला से लउकी जग में के होइहन आपना। राम...
राम नाम कहऽ मन एक दिन होइहन सब धन सपना। राम...
राम-राम कहि के ‘भिखारी’ खूब सूर में अलपना। राम...

प्रसंग:

जनकवि भिखारी ठाकुर का विश्वास है कि चारों पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष राम-नाम के लिखने से प्राप्त होता है। इसीलिए वे परामर्श देते हैं कि अपने सभी अंगों में अन्दर-बाहर ‘राम’ लिख लिया जाय।

घटती-बढ़ती अछर नहीं सीताराम के नाम।
एने-ओने होने ना पावे कहत ‘भिखारी’ हजाम॥
‘राम’ अछर से अर्थ-धर्म मिली, ‘राम’ अछर से काम।
‘राम’ अछर से मोक्षधाम मिली, लिखि देहु बदन तमाम॥
जीव के भीतर राम नाम लिखऽ, जीव के बहरी राम।
कहे ‘भिखारी’ स्वांस-स्वांस में सीताराम के नाम॥

प्रसंग:

मानव जाति में जन्म लेकर भी मनुष्य अपना समय व्यर्थ के कार्यों एवं दुर्व्यसनों में व्यतीत करता है।इस कठिन कलियुग में केवल राम नाम ही सहारा है।

झूठहूँ के बीतत बा समइया राते-दिन, हरे राम-राम।
नर-तन पइबऽ कब फीन? हरे राम-राम।
गाँजा-बीड़ी-पान खालऽ रोपेया से कीन, हरे राम-राम॥
रतन मिलत बा दाम बिन, हरे राम-राम॥
राम नाम सबद में रहिहऽ लवलीन, हरे राम-राम॥
ढोलक बजा के ता-ता-धिन, हरे राम-राम।
कहत ‘भिखारी’ बानीं बिदेया के हीन, हरे राम-राम॥
हउअन कलिजुगऊ कठीन, हरे राम-राम॥

प्रसंग:

कीर्त्तन के माध्यम से राम के सभी भाइयों एवं उनकी पत्नियों का स्मरण करने का परामर्श।

भजन करऽ राम-नाम दिन-राता। भजन करऽ...
राम-राम लछुमन, सीता-सीता हर छन, किरतन में सगरो गवाता। भजन करऽ...
भरतजी, रिपुहन कही से हऽ धन-धन, धन ऊहे धरती जनाता। भजन करऽ...
मांडवी, उरमिला कहऽ सु्रतिकिरती रटते रहऽ केहू हऽ, भावह, केहू भ्राता। भजन करऽ...
कहत ‘भिखारी’ नाई, राम-राम कहऽ भाई! मनवाँ में अतने बुझाता। भजन करऽ...

प्रसंग:

‘राम-राम कहने से सभी पाप कटते हैं तथा रामपुरी जाने का भय भी छूटता है।

राम-राम कहऽ मन! राम एक बारा।टेक।
राम-राम कहला से सुनि लऽ मिली नाम के सहारा। राम-राम कहऽ
राम-राम कहला से सुनि लऽ मिली होला पाप जरिछारा। राम-राम कहऽ
राम-राम कहला से सुनि लऽ छुटिहन जम के दुआरा। राम-राम कहऽ
राम-राम कहि के ‘भिखारी’ होइबऽ भवनिधि पारा। राम-राम कहऽ

प्रसंग:

रामावातार के समय राम के सत्कार्यों का पुनर्स्मरण।

चरन कमल बलिहारी ए रघुबर!टेक।
गनिका, अजामिल, गीध,सुपच के कइलऽ सीध, हउअऽ तूँ अधम उधारी, ए रघुबर! चरन...
ताड़िका-सुबाहु मारि, तारी गौतम के नारी; गइलऽ जनक-फलवारी ए रघुबर! चरन...
मन तूँ घमंड तजऽ, मातु-पिता के भजऽ; उमा सहित तिरपुरारी ए रघुबर! चरन...
कहत ‘भिखारीदास’, चरन में लागल आस; मन-कर्म-बचन हमारी ए रघुबर! चरन...

प्रसंग:

रामचरित के विभिन्न कार्यों का उल्लेख

राम के नित चरचा चलाइब। टेक।
अवध का जनम, जनकपुर के सादी के मंगल गाइब। राम के...
दसरथ-मरन, हरन सीताजी के बार्त्ता सुनाइब। राम के...
खर-दूसन-रावन का लड़ाई के किरतन जमाइब। राम के...
भरत-मिलाप, राम-राजगद्दी के खुसी मनाइब। राम के...
कहत ‘भिखारी’ जिन्दगी भर असहीं बिताइब। राम के...

प्रसंग:

रामावतार के कार्यों का स्मरण करते हुए राम नाम जपने का महत्त्व बताना।

हरि नाम रटऽ तन-मन हो! भगवान तूँहीं धन-धन हो!
तजि बैकुंठ मसान में आई, गज भर कपड़ा कारन भाई! तहाँ माँगत राजा कफन हो! भगवान...
नगर अवधपुर पावन कीन्हा, जन्म राउ दसरथ-गृह लीन्हा; सतरूहन, भरत, लखन हो! भगवान...
जनकपुर में जग्य रचाये, धनुष तोड़ि घर सिया ले आये; कछु दिवस फिरे वन-वन हो! भगवान...
सेवरी बइरि जूठ करि राखे, तेही के भाव सहित कुछ चाखे; नित प्रेम में रहत मगन हो! भगवान...
मन! तूँ छोड़ऽ कलह-चतुराई राम नाम कहऽ ध्यान लगाई; छूटि जइहन आवागमन! भगवान...
ना चेतबऽ पहिले से मनवाँ, पाछे परी गला में फनवाँ, जमदूत मरिहन हन-हन हो! भगवान...
हे प्रभु भवसागर के खेवइया! टाँकल रहत बा फुटही नइया; ‘भिखारी’ कहत छन-छन हो! भगवान...
क्षे.: भवसागर से मेरी नइया पार लगा दो राम कन्हैया।

प्रसंग:

इस अर्द्ध-पद कीर्त्तन में गोविन्द को भजने (याद करने) का अनुरोध है।

भजऽ गोबिन्द-गोबिन्द भाई!टेक।
भजै गोबिन्द-गोबिन्द भाई! कलिजुग कर मस्तक नवाई।टेक।
सरकार सोझा भाव बतलाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
तहँ कोटिनो तिरथ होइ जाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
(तहँ सकल तिरथ चलि आई)। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
जस जगत मंे सगरो गवाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
जरिछार पाप होइ जाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
जमदूत भगिहन सरमाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
बाटे लउकत सहज उपाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
फिर अइसन अवसर ना आई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
एक नाम बिन जइबऽ ठगाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
कहियो होई अचके बिदाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
नर तन पाके कइलऽ तूँ का ई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!
यह कहत ‘भिखारीदास’ नाई। भजऽ गोबिन-गोबिन्द भाई!

प्रसंग:

‘सीताराम-राधेश्याम भजने से आत्मा परमहंस बन जाती है।

सीताराम राधेस्याम कहऽ हंस।टेक।
तब छूटि जइहन भवजाल के फंसा। सीताराम...
कहि-कहि के हो जइबऽ परमहंसा। सीताराम...
जेहिके के जानि गइलन रावन-कंसा। सीताराम...
कहत ‘भिखारी’ नाई बंसा। सीताराम...

प्रसंग:

मृत्यु के बाद सारे सांसारिक संबंध एवं संपदा बेमानी हो जाते हैं। केवल राम नाम जप करने वाला ही परमधाम पाता है।

हरि गुन गावऽ नित चित लाई। काहें गइलऽ भरम में भुलाई? टेक।
धन-सुत-दारा, महल-दुआरा, बैल-भँइसिया-गाई।
हाथी-घोड़ा सब छुटि जइहन, जब घेरी कफ-पित्त-बाई। काहें गइल...।
गोतिया-नतिया केहू ना लउकी, स्वारथ बस में भाई।
डॉड़ के डोरा तक ना पइबऽ, जेकरा लिखल बा से खाई। काहें गइल...।
जग अनठेला, सब रंग मेला, बेचत बा हटवाई।
दाया-सत्त के सउदा करि लऽ, करि-करि कोटिनो उपाई। काहें गइल...।
आठो जाम राम के भजिलऽ क्रोध-लोभ विसराई।
नाहीं त मन तूँ फन में परबऽ कहत ‘भिखारी ठाकुर’ नाई। काहें गइल...।

प्रसंग:

लोक कवि भिखारी मनुष्य को कपट छोड़कर चौथेपन में राम-नाम भजने का परामर्श दे रहे हैं।

खोलि दऽ कपट के केवारी हो, मन! राधेकृस्न बोलऽ।टेक।
पाकल केस, काल पकड़लस, ना जाने जे केहि घरी मारी हो! राधेकृस्न बोलऽ।
राम नाम में दाम ना लागत, मिलत बा रतन उधारी हो! राधेकृस्न बोलऽ।
घरी-घरी हरि नाम सुमिरि लऽ, भरि भंडार के कोठारी हो! मन! राधेकृस्न बोलऽ।
नर-तन पाइ काइ अब करबऽ, कहत ‘भिखारी’ रूपधारी हो! मन! राधेकृस्न बोलऽ।

प्रसंग:

संसार से नाता स्थापित कर मनुष्य व्यर्थ हो परेशान है। काम, क्रोध, लोभ, मद छल और कलह को त्याग कर भगवान में नेह लगाने की सलाह।

नाहक नाता लगा के सब से जग में जाल पसारा हो!
नारायेन भजऽ ए मनवाँ! ईहे अरज हमारा हो!
ओही अवसर में समुझ परी, चली नयन से धारा हो!
नर-तन रतन गँवाइ के; चलबऽ हाथ पसारा हो!
काम, क्रोध, मद, लोभ, छल, कल तजि दऽ सकल बेकारा, हो!
केवल नाम इयाद करऽ, रहऽ सबसे बेचारा हो!
भवजल नदिया भेयावन के, अनहद बा करारा हो!
सेतु बनावऽ सत नाम के, बाटे रूखर धारा हो!
कहत ‘भिखारी’ भगवान से, हरऽ अवगुण भारा हो!
चरन कमल दरसाइ के, करऽ अधम उधारा हो!

प्रसंग:

इस गजलनुमा गीत में लोक-कवि सभी धर्म तथा जाति-भेद का त्याग कर भगवान का भजन करने का परामर्श देते हैं।

यह कविजन मन का सलाह से है। सबहीं को सलामत अल्लाह से है॥टेक॥
कोई टोपी, जूता, सिरवानी, छाता। कोई सर प मोटरिया, ना तन में लाता।
कोई हयदल-पैदल, कोई गज पर चले। फिकिर सबको मंडप-घर का राह से है॥ सबहीं को...
चलि जात बरात निसान बजा। कोई भूखे मरत, कोई खात खाजा।
कोई हँसी-दिलगी मचावत बा। मगर सादी तो एक हीं दुल्लाह से है॥ सबहीं को...
कोई हिन्दू, ईसाई, मोमीन बने। किंतु नइया पर भइया जो खेवइया बने।
एक सथ में सबको पार करे। दुनियाँ दलेल का मल्लाह से है? सबहीं को...
कर जोरि ‘भिखारी’ करत अरजी। बिनु सेवा उतारऽ तेरी मरजी।
जो पालत सिरिजत संहारत है। वही छत्रपती बदसाह से है। सबहीं को...

प्रसंग:

सांसारिक काम, क्रोध, मद एवं लोभ रूपी फौज से लड़ते हुए भवसागर से पार उतरने तथा बार-बार आवागमन से बचने के लिए भगवान के स्मरण करने की सलाह।

राम कहऽ... मन बैपारा हो, ईहे अरज हमारा हो!टेक।
नितर भीतर से नीर गिरिहन, एक दिन झर-झारा हो!
नर-तन रतन गँवाइ के चलबऽ, हाथ पसारा हो! राम कहऽ...
भव-जल गहिरा भेयावन के, हउवे रूखर धारा हो!
सेतु बनावऽ सत नाम के, चढ़ि के उतरहु पारा हो! राम कहऽ...
काम, क्रोध, मद, लोभ फउज से होके खबरदारा हो!
कहऽ घरी-घरी हरि-हरि, हरि-हरि नित बारंबारा हो! राम कहऽ...
कहत ‘भिखारी’ भरमत फिरबऽ मिली आर-न-पारा हो!
तीनही अक्षर परिपूरन त होत, अधम उधारा हो! राम कहऽ...

प्रसंग:

मनुष्य को अपने सभी कार्यों के साथ ‘राम’ नाम को जोड़ने की आवश्यकता है।

करि लऽ राम नाम सुमिरनवाँ मनवाँ! कवनो बहानावाँ ना।
राम नाम कहऽ भीतरी भवनवाँ, निकसत बहरी अँगनवाँ,
कहिहऽ राम करत असनानवाँ, कहिहऽ करत जलपानवाँ। मनवाँ...
कहत-सुनत में ‘राम नाम’ कहऽ, माँजत खानी बरतनवाँ,
लेत-देत में राम नाम कहऽ, देखत में दरपनवाँ। मनवाँ...
राम नाम कहऽ भोर-शाम के, राम कहऽ करत भोजनवाँ।
राम नाम कहऽ करत मसखरी, लागल बा नीमन लगनवाँ। मनवाँ...
राम नाम के पहिरऽ गहनवाँ, रामनाम चपकनवाँ,
कहत ‘भिखारी’ राम नाम के ‘साजि’ लेहु सभ अभरनवाँ। मनवाँ...

प्रसंग:

राक्षस-राज हिरण्कश्यपु अपने भगवद्भक्त पुत्र प्रह्लाद को ‘राम-नाम’ का जप करने से रोकता है और प्रह्लाद उसकी बात मनने से इनकार करता है।

राम नाम के रोकत रोकनिहार ए सामलिया!
राम कहत बाड़न कहनिहार ए सामलिया!
राम नाम के कहल छोड़ि दऽ ठानल ठनगनियाँ;
राम नाम के कहल छोड़ि दऽ लेलऽ राजधनियाँ;
राम नाम के कहल छोड़ि दऽ खोलि दऽ पपनियाँ;
राम नाम के कहल छोड़ि दऽ मानि लऽ बचनियाँ
नीमन मन से सिखवत बारंबार ए सामलिया!
अबहूँ से कुछ बगदल नइखे, छोड़ि दऽ राम नाम कहनाम;
हरेक भासा के वक्ता बनि जा, बिद्या पढ़ि के करिलऽ नाम;
बिद्या रतन अनमोल त्यागि के, झुठहूँ रटत राम के नाम;
मारब जान जहान से जइबऽ, राम ना अइहन कउड़ी काम;
राम नाम से फैलत बा तकरार, ए सामलिया!
हिरनकसिपु ‘प्रहलाद’ पुत्र के धिरवत, मारत मूका-लात;
बारह महीना बाहर राखत अंगवत सीत, धूप, बरसात।
अन-पानी में जहर मिला कर नितहूँ मिलत बा साँझ-परात;
गुरु-पुरोहित बरजत बाड़न, नइखन मानत केहु के बात।
अतने पर बा सब कुछ दारमदार, ए सामलिया!
राम नाम में मन लागल बा, राम कहब दिन-रात में।
राम नाम में मन लागल बा, राम कहब खात में।
राम नाम में मन लागल बा, राम कहब कोहनात में।
राम नाम में मन लागल बा, राम कहब अगरात में।
कहत ‘भिखारी’ राम कहब ललकार ए सामलिया!
राम नाम के रोकत रोकनिहार, ए सामलिया!
राम नइखन होखत इनकार ए सामलिया!

प्रसंग:

हर परिस्थिति में राम नाम के उच्चारण करने की सलाह देते हुए।

राम-सीता नाम कहनाम ए साँवलिया!
जगह-जगह में घूम-धूम के तमाम ए साँवलिया!
राम नाम के करऽ उचारन बोवल-परती खेत में।
राम नाम के करऽ उचारन माटी-बालू-रेत में।
राम नाम के करऽ उचारन गाहक! सउदा लेत में।
राम नाम के करऽ उचारन खोलि के पइसा देत में।
राम-सीता नाम आठो जाम ए साँवलिया!
जगह-जगह में घूम-घूम के तमाम ए साँवलिया!
राम नाम के करऽ उचारन देखि के अवगुन-गुन में।
राम नाम के करऽ उचारन गावत, नाचत, सून में।
राम नाम के करऽ उचारन खरज, मधम, दून में।
राम नाम के करऽ उचारन कथा, कहानी, टून में।
राम नाम के करऽ कर के परनाम ए साँवलिया!
जगह-जगह में घूम-घूम के तमाम ए साँवलिया!
राम नाम के करऽ उचारन चिउरा, दही, गूर में।
राम नाम के करऽ उचारन देस, बिदेस, पूर में।
राम नाम के करऽ उचारन चिकना चाहे धूर में।
राम नाम के करऽ उचारन लिखनी करत हजूर में।
राम नाम से बनि जइहन सब काम ए साँवलिया!
जगह-जगह में घूम-घूम के तमाम ए साँवलिया!
राम नाम के करऽ उचारन करत सनियाँ-पनियाँ।
राम नाम के करऽ उचारन करत सनियाँ-पनियाँ।
राम नाम के करऽ उचारन पुरुष, लरिका, जनियाँ।
राम नाम के करऽ उचारन पीसत हरदी-धनियाँ।
राम नाम के करऽ उचारन हो जइबू भगमनियाँ।
कहत ‘भिखारी’ कुतूपुर हऽ ए साँवलिया!
राम-सीता नाम कहनाम ए साँवलिया!

प्रसंग:

राम नाम की महिमा बताने के लिए लोककवि भारतीय पौराणिक एवं महाकाव्य कालीन कथाओं का संदर्भ देकर राम नाम पर आस्था रखने की वकालत करते हैं।

दया सत शान्ति संतोष। मन इनहीं के भरोस॥
तब करऽ राम नाम के धारन। कहाँ भरमब कवने कारण॥
प्रथम पूज्य गणेश कहइलन। कवन यज्ञ-ब्रत-तीरथ कइलन।
राम नाम लिखिके घूमि गइलन। तब से सब से आगे भइलन।
नाम के महिमा अइसन हउवन। जन प्रहलाद के सांसति भउवन॥
हिरणकशिपु अस वीर कहउवन। नामे कारण मारल गउवन॥
सेही नाम कलियुग में असहीं। लोग कहत बा जस-ही-तसहीं॥
आज केहू के नइखे भय। बोलिये रामचद्र की जय॥
राम नाम से सेवरी-गनिका। बनि गइली केहू दोसर बनिका॥
जेकर रहे नीच में दाफा। नामे कइलन फींच के साफा॥
तेकर नाम गवात बा आज। अइसन बा सबूत महाराज॥
राम गुरु का मुख से भउवन। दास कबीर के सबद कहउवन।
नामे लगलन सबद कहावे। कहू ना अपन माल बतावे॥
कलियुग के महिमा बा भारी। समय मिलल बा कहत ‘भिखारी’॥

एहिजे मन राखऽ विश्वास। सब जगह से होइबऽ पास॥
राम नाम के करऽ प्रचार। तब होइब भव-सागर पार॥
अवसर चलल जात बा बीत। अब मन कब करब परतीत॥
नइखन लागत मेहनत दाम। कलि में मिललन सेतीहे नाम॥
बाल्मीकि के प्रथम कहानी। रहसु ब्याधा सुनत बानी॥
नाम नाम कहे लगलन जब से। बड़का पुस्तक रचलन तबसे॥
जवना रंग में तुलसीदास। ससुरारी में कइलन बास॥
राम नाम से ऊ दिन गइल। तुलसीकृत रामायण भइल।
घूम-फिर के नईंया ऊहे। लोग लागत बा कसहूँ दूहे॥
काम-धेनु के दर्शन भइल। छोड़ दऽ मन कतहूँ के गइल॥
करनी सुलोचना कइसन कइली। एक पति से पतिब्रता भइली॥
बहुत पति कइला से चोला। दिने-रात झगड़ा होला॥
राम नाम से बनिहन काम। नाहक परी सतभतरी नाम॥
रहत ‘भिखारी’ दीयर पर। घूमल ना सपरी दुनिया भर॥
छछनत मुर्दा कान्ह पर धइलन। राम नामसत कहते गइलन।
घर धन तजि ईश्वर में रहेलन। सेहु साधु सत नाम कहेलन॥
राम सतो गुण सत के अंग। खुशी से मन करिह सतसंग॥
सड़सठ पुस्त का सत के पुण्य बटोराइल जब।
कहत ‘भिखारी’ राम अवध में प्रगट भइलन तब॥



आधा पद के कीर्त्तन

राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ, भितरी बइठल अस्थनवाँ॥
राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ, चाहे घूमी करीह असनानावाँ॥
राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ, जानऽ झट कर लागी गइल ग्रहनवाँ॥
राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ, काशी जी में आइ कर कइलीं असननवाँ॥
राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ, कोटनो करोड़ गऊ होई गइली दानवाँ॥
मकर प्रयाग राज भइल दरसनवाँ, फल हउवनदस हजार जग का समनवाँ॥
गिरी सम सोन से हो गइलन समनवाँ, आधा पद के होखत बा ‘भिखारी’ के भजनवाँ।
राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ, राम-राम राम-राम राम कहऽ जानवाँ,

राम राम नाम कह बारम्बारी, उमर बितत बाटे सारी।
घरकच उदम से जइब जब हारी, राम-रस पिय ढारी-ढारी। उमर...
ब्रत-तिरथ राम नाम ध्यानचारी, वृद्ध-युवा बाल नर-नारी॥ उमर...
नाम हिये में जपत त्रिपुरारी, एक दिन होइ ब लंगाझारी। उमर...
राम राम नाम कहऽ कहत ‘भिखारी’, अतने बा अरज हमारी। उमर...

ए चोला नित राम में लाग, पर-धन तिया रण्डी मांस मदिरा त्याग।
राम भजन से गणिका, गीध तरि गइलन काग।
राम भजन से ते भूमि के, धरत शेष नाग।
कहत ‘भिखारी’ निशिदिन, पद राम के राग।

वार्तिक:

हमनी का सुनीला जे असलोक। ग्रहन लगला पर काशी जी स्नान कर के जे आदमी एक करोड़ गउ दान करके, मकर प्रयाग राज में दस हजार जग करस, सुमेरु परबत अतना सोना दान करस, तदपि राम नाम कहला के मोताबिक ना-होखस।


कवित्त

दुई बार द्वारिका, त्रिबेनी जाय तीन बार, चार बार कासी गंग अंगहु नाहाएते।
पाँच बार गया जाय, छः बार नेमिसार, सात बार पुष्कर में मंजन कराएते।
रामनाथ, जगरनाथ, बद्री-केदारनाथ, दसासौमेघ में दस बेर पगधाएते।
जेते फल होत सकल तिरथ स्नान किए, तेते फल होत एक राम नाम गाएते।

हमरा राम नाम सुत संपत, राम बाप और मइया हो।
मनि मानिक चिन्ता हरिनामें, नामे सोना रुपैया हो।
पारस मनि चिन्ता हरिनामें, कल्प वृक्ष सुर गइया हो।
रामेश्वर बिनु राम नाम के, सकल पदारथ पईया हो।

चौपाई:

कोटि गउ जो देबै दाना। ग्रहन करे काशी अस्नाना॥
मकर प्रयोग बसे जो जाई। यज्ञ करै दस सहस सुहाई॥
गिरि सम हेम दान कर जोइ। राम नाम समतुल्य न सोई॥

श्लोक:

गो कोटि दानम् ग्रहने को काशी मकरे प्रयागम युत कल्प बासी॥
जेवत सुमेरु सुवर्ण दानम् गोविन्द नामम् सुबरेन तुल्पम्॥

वार्तिक प्रति कृष्ण चन्द्र जी का नाम के महात्म।