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तारों की गणना कहती है
तुम्हें स्वर्ण रथ लेकर सृष्टि की परिक्रमा पर निकल जाना चाहिये
अन्यथा असलाई निंद्रा में
आत्मबोध की प्रतिछाया
तुम्हारे भव्य अभिषेक के इंतजार में है,
यह विधान तुमनें रचे
अम्रत तुमसे, कालकूट तुम्हारा
केसरिया ध्वज, ऊँचे मचान और आसमानी तीरगी
पर मंडराते गिद्ध तुम्हारे प्राणों का स्पन्दन
यह अविजित पाखंड तुम्हारे तुम्हीं जानों,
मगर सच जो था साश्वत रहेगा
अजर होना अमर होना
शरणार्थी होकर सृष्टि में महाप्रलय की गूंज
तुमने उठाई, तुमने मिटाया हर तिनका जो अभिमानी था
तुमने मुझे लगाया गले, और डर गए तुम ही
अब यह
मंद मंद मुस्कुराहट
चुप्पी ख़ामोशी, और गला काट लेना
में नतमस्तक मेरे ईश्वर
मुझे झुकाया, मुझे जमीदोज किया
इन कर्मो का फल भोगना होगा तुम्हें,
तुम्हीं थे जो कहते थे
मैं नश्वर, मैं अस्त मैं तुम और तुम से मैं हूँ,
भेंट ग्रहण करो
बारह अश्वो का रथ, अकाल में जूझते कदम
प्यास का संकट, सूखे पेड़, अथाह सागर
धरती-आकाश –बैकुंठधाम
देवी-देवता, नर-नारी-किन्नर,
दैत्य-दानव, पशु-पक्षी,
सब कुछ कुछ तुम्हारे
मैं राक्षस होने को हूँ
महाप्रलय मेरा रास्ता नहीं रोक सकती
आँधियों का आगाज में सुन चुका हूँ
मैं देता हूँ तुम्हें अचूक मन्त्र शक्ति
निकल जाओ, अज्ञातवास की और
जहाँ मैं तुम्हें तब ढूंढता हुआ पहुँचू
जब मेरा श्राप पूर्ण हो,
पहरेदार सो चुके है, चाँद मद्धम है
हे ईश्वर, तारों की गणना कहती है
तुम्हें स्वर्ण रथ लेकर सृष्टि की परिक्रमा पर निकल जाना चाहिये।