"मसीहा / रचना दीक्षित" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचना दीक्षित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:29, 8 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
किसी की मनःस्थिति,
सुकोमल भावनाएं,
मर्यादा, सीमा,
लक्ष्मण रेखा लांघना
न सोचते हैं, न देखते हैं
ये शील हरने वाले
जानते और सोचते हैं तो बस
सीमा रेखा लांघना,
कुचलना, रौंदना और दर्द देना
कल ही की तो बात है
जमाने के बाद
कई लेप लगाए थे
भरपूर श्रृंगार किया था
मेरे घर से हो कर गुजरने वाली सड़क ने
नज़र न लग जाये किसी की
सो आनन फानन में
ओढ़ ली डामर की काली चमकीली ओढ़नी
फिर क्या था
बिना रुके, अटके, बडबडाये,
शरू हो गयी वाहनों की दौड़ और होड़
उस पल वो
सकुचाई, शर्माई, इतराई, लजाई
अपनी किस्मत पर
अगले ही दिन
डाल दिया जल निगम वालों ने अपना डेरा
तार तार कर दी
नई काली चमकदार डामर की ओढ़नी
छिन्न भिन्न कर डाले अंग
टुकड़ा टुकड़ा देह और बस एक टीला भर
धूल माटी में चेहरा छुपाए
सबकी नज़र बचाए
दुबक गयी बेचारी सडक
क्या हमारी ही तरह वो भी
प्रतीक्षा कर रही है
किसी मसीहे का
कभी तो होगा कोई
जो बचा लेगा
उसकी ओढ़नी तार तार होने से