भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सम-विषम / रचना दीक्षित" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रचना दीक्षित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:29, 8 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

जब भी छा जाता है
जीवन में अन्धकार
शून्य सी हो जाती हूँ
मिटाने को अकेलापन
लगाती हूँ
हम प्याले, हम निवाले,
हम साये, हम शक्ल से
कुछ अंक,
शून्य से पहले
और हमेशा ही घटती
और विभजित होती हूँ
सम संख्याओं की तरह
कुछ इस तरह की
कुछ भी बचा नहीं पाती अपने लिए
मात्र एक शून्य के
विषमताओं से सीखा है
शून्य से परे कुछ अंक लगाना
घटती और विभाजित तो होती हूँ आज भी
इसके बाद भी बचा ही लेती हूँ अक्सर
कुछ अंक अपनी मुट्ठी में
विषम संख्याओं की तरह
निकलने लगी हूँ अब
सम संख्याओं के जाल से
पहचान जो लेती हूँ
अनेकों सम में छुपे कुछ विषम चेहरे
यूँ बच जाती हूँ
कई बार शून्य होने से
शून्य से अंकों तक
और अंको से शून्य तक
जी लेती हूँ एक सम्पूर्ण जीवन