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"इंतजार / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल" के अवतरणों में अंतर
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मुझे कोई हक नहीं
तुम्हें प्यार करूँ
मुझे कोई हक नहीं
अपने जीवन में
तुम्हारे प्यार का
इंतजार करूँ
क्या सदा रह सकती है बसंत?
जानता हूँ
बस एक बार आती है
प्यार से गुदगुदाती है
फूलो-फलो
फिर पको
और पतझड़
नग्न हो जाने को
फिर तुम्हारे प्यार से
सघन हो जाने को।