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"नववधू का गृहप्रवेश / कविता पनिया" के अवतरणों में अंतर

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21:13, 21 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

एक दिवस नववधू का गृहप्रवेश देख,
कुछ प्रश्न मन में उठे
कैसे यह पौधा अपनी ज़मीन से,
उखड़कर सजधज कर खड़ा है
क्या यह पुनः रोपित होगा
सिंचित हो फलेगा फैलेगा,
या शोषित हो मुरझाएगा
क्या यह अपनी जड़ें जमा पाएगा
क्या इस पर मृदुल स्पर्श का जल,
छिड़का जाएगा या तपिश में
यह जल जाएगा
लोग कहते हैं नया जनम
इसने पाया है
मुझे तो ये गुलाब का पौधा नज़र आया है
जिसे कहीं भी रोपा जाए
अपनी जड़ें जमा लेता है
उम्मीद है
यह भी गुलाब का पौधा साबित हो
काँटों के बीच रह कर भी
खिले मुसकुराए
अपनी खुशबू से घर अाँगन महकारी,
अपने अस्तित्व के साथ
नववधू घर आए