भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वार्तालाप / कविता पनिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता पनिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:17, 21 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
दिवा को संध्या की गहन प्रतीक्षा के क्षणों में देखना
ठीक उस पर्वत की प्रतीक्षा की भाँति होता है
जहाँ आसमान झुककर उसे ढक लेना चाहता है
कुछ भाषाएँ शब्दों की औपचारिकता से मुक्त रहती हैं
एकांत में अदृश्य शब्द गुंथ जाते हैं
जैसे निशा की श्वेत चाँदनी में श्याम अक्षर वार्तालाप करते हैं
प्रिय मिलन की आस प्रेयसी के कपोलों पर अश्रुधार विरह की पूरी कथा लिख जाती है
शब्दों की अनुपस्थिति जैसे अपना विलोम कहती हो
कथनीय - अकथनीय के भेद का अंत ही शब्दों के साश्वत हो जाने का प्रमाण है
यह वार्तालाप