"दुनिया के लिए जरूरी / विवेक चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:04, 23 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
बहुत सी खूबसूरत बातें
मिटती जा रही हैं दुनिया से
जैसे गौरैया
जैसे कुनकुनी धूप
जैसे बचपन
जैसे तारे
और जैसे एक आदमी, जो केवल आदमियत की जायदाद
के साथ जिंदा है।
और कुछ गैरजरूरी लोग न्योत लिए गए हैं
जीवन के ज्योनार में
जो बिछ गई पंगतों को कुचलते
पत्तलों को खींचते
भूख भूख चीखते
पूरी धरती को जीम रहे हैं।
सुनो दुनिया के लिए जरूरी नहीं है मिसाइल
जरूरी नहीं है अंतरिक्ष की खूंटी पर
अपने अहम को टांगने के लिए भेजे गए उपग्रह
जरूरी नहीं हैं दानवों से चीखती मशीनें
हां क्यों जरूरी है मंगल पर पानी की खोज?
जरूरी है तो आदमी नंगा और आदिम
हाड़-मांस का
रोने-धोने का
योग-वियोग का
शोक-अशोक का
एक निरा आदमी
जो धरती के नक्शे से गायब होता
जा रहा है
उसकी जगह उपज आई हैं
बहुत सी दूसरी प्रजातियां उसके जैसी
पर उनमें आदमी के बीज तो बिलकुल नहीं हैं।
इस दुनिया के लिए जरूरी हैं
पानी, पहाड़ और जंगल
जरूरी है हवा और उसमें नमी
कुनकुनी धूप, बचपन और
तारे बहुत सारे।