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"औरत की बात / विवेक चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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लड़की नाचती है तो थोड़ी सी तेज हो जाती है धरती की चाल
औरत टाँक रही है बच्चे के अँगरखे पर सुनहरा गोट
तो तेज हो चली है सूरज की आग
बुढ़िया ढार रही है तुलसी के बिरवे पर पानी
तो और हरे हो चले हैं सारे जंगल
पेट में बच्चा लिए प्राग इतिहास की गुफा में
बैठी औरत
बस बाहर देख रही है
और खेत के खेत सुनहरे
गेहूँ के ढेर में बदलते जा रहे हैं।