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"बंदिनी / विवेक चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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17:06, 23 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

वो चाहती है उसके हाथों से बुना गया है जो सूत का सुआ
वो उड़कर चला जाए उसके देस भरकर चिठ्ठी का भेस
जाकर बैठ जाए वो सुआ बाबू की सूखती परधनी पर
अम्मा के हाथ की परात पर
भैया की साइकिल के हैंडल पर
भाभी के कोठे की खूँटी पर
और अपनी चोंच और पैरों से छू ले वो सुआ सब
जो वो नहीं छू सकेगी अब बरसों बरस।