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"कहाँ हो तुम / विवेक चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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बरस गया है
आसाढ़ का पहला बादल
हरी पत्तियाँ जो पेड़ में ही
गुम हो गई थीं
फिर निकल आई हैं
कमरों में कैद बच्चे
कीचड़ में लोट कर
खेलने लगे हैं
दरकने लगा है
 आँगन का कांक्रीट
उसमें कैद माटी से
 अँकुए फूटने लगे हैं
 कहाँ हो तुम