भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सभ्यता का विकास / परितोष कुमार 'पीयूष'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परितोष कुमार 'पीयूष' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:57, 24 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
मानव सभ्यता के विकास में
हम मानव से पशु कब बन गये
पता ही ना चला
सभ्यता के उदय में
समस्त मानवीय मूल्यों का
पतन होता गया
संसाधनों की खोज और विकास में
हमारी सारी संवेदनाएँ विस्मृत होती गयीं
पनपते बाज़ार में
कराहते
टूटते रिश्तों ने
घर में ही घर बना डाला
सभ्यता विकास के इस दौर में
पशुता में तब्दील हो चुकी आदमियता ने
अपना ही विनाश कर लिया
यही हमारी सभ्यता का चमकता विकास है
कि आज आदमी ही
आदमी के खिलाफ खड़ा है