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"माता भक्ति / 8 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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प्रसंग:

ना तकला पर हित बहुत बाड़न, तकला पर हित केहू ना मिली। कहीं लिखल बा...

दोहा

सिंहन के लेहड़े नहीं, नाहीं चनन बिनु पात।
साधु के झुण्ड नहीं, हीरा ना हाट बिकात॥

वार्तिका:

केहू कहे कि दस-पाँच गो सिंह एकट्ठा देखली हॉ, से झूठ बात ह। चनन के गाछ में केहू कहे कि पाता देखली हा, झूठ बात ह। साधु के केहू कहे कि दस-पाँच एकट्ठा देखलीं हा, झूठ बात ह। जइसे कि हीरा हाट में ना बिकाय। हीत जेह से हीरा का मोकाबिला में ह। आजकल का जमाना में जहाँ-तहाँ दू-चार हित भेंटा जात बाड़न, ई सब केहू हित ना हवन, ई मुखालिफ हवन।

हितई आजकल के जमाना में लउकत बा, दूध ओ पानी का साथ। कइसे? जब दूध में पानी फेंट दिआला, दूध का कहेला कि जब बेचारा हमरा सरन में आ गइल, त एकर इज्जत बढ़ा देवे के चाहीं। तब पानी का दूध का भाव से बिकाये लागेला। जब आग पर धइल जाला, तब पानी कहेला कि हमार इज्जत बढ़ा देलें बाड़न। एह जगहा पर हमरा जरे के चाहीं, तब पानी सब जर जाला। तब दूध बिचारेला कि प्रीतम हमार जर गइल, हम रहके का करब, तब नादा में से दूध उठेला कि आग में कूदि के भस्म हो जाइब-जब कनखा पर दूध आ जाला, तब पानी से मार दियाला। तब दूध कहेला कि हमार प्रीतम पानी आ गइल, अब ना जरब।