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"माता भक्ति / 5 / भिखारी ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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15:38, 6 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

प्रसंग:

समय की गति के अनुसार मूल्यों में परिवर्तन आते हैं। सामाजिक मूल्य भी नए आयाम पकड़ते हैं। इससे पारिवारिक परिवेश भी बदलते हैं। जो माता-पिता पहले पूज्य और महत्त्वपूर्ण माने जाते थे, आज उनका भी अवमूल्यन हो गया है। पूँजीवादी मानसिकता उन्हें भी एक उत्पादक इकाई के रूप में देखती है। बढ़ती उम्र की कमजोरियों को नजरअन्दाज कर उन्हें पारिवारिक कार्यों में लगाना चाहती है। कोई भावनात्मक संवेदना शेष नहीं रह गई है। बहुएँ अपनी सास की भावनाओं की कद्र नहीं करतीं और स्वयं गलत मानसिकता और आराम की जिन्दगी बिताती हैं। इसी सामाजिक मानसिकता के उभय पक्ष को ग्रामीण परिवेश में प्रस्तुत किया गया है। माँ, बेटा और बहू की मानसिकता और व्यवहार द्रष्टव्य है।

वार्तिका

जइसे कुत्ती चिते सुत जाले, बच्चा चभर-चभर छाती पर चढ़के दूध पिअलसनी ओह समय केहू भाला लेके जाय, तदपि कुत्ती नेटी पर चढ़ जाये के इरादा राखेले। काहें? बच्चा के दाहे। जब कुत्ती कतहूँ चल जाले, तब लड़िका जाके करीअवा-ललका धागा बान्ह देला लोग। अठरहा, बीसहा गिनके। माठा-भात खिआ के ‘कुत्त-कुत्त’ चाल करेला लोग। ऊ पिल्ला पाछा लागल धउरेला कि इहे हमार स्वामी हवन। अब मतारी उनका भोर पर गइलीं। हंडिया ढूँढे का पीछे घर-घर मतारी डन्टा खात फिरतारी। ओह पिल्ला के नाम पड़ल-तजिया, सिकरिया। पोसनिहार कहेला कि एह जून हमार कुत्ता बड़ा सिकारी भइल बा। मतारी के कुछ ना फल मिलल। तइसे जे बेटा नीमन अर्थ कहेके हाल जानस, मोकदमा के हाल जानस, पहलवानी करेके हाल जानस, नीमन रुपया कमाये के हाल जानस। मतारी-बाप के सेवा करेके हाल ना जानस, तब बूझे के चाहीं हम आदमी के बच्चा ना हईं-कुत्ती के पिल्ला हो गइलीं।

देवता विलाप (लय कजरी)

देवता रोवत बाड़ी घरवा में मतरिया, हँसत बा नगरिया ना॥टेक॥
बेटा बोलत बाड़न बात, बुढ़िया खाले पूरा भात।
नइखे बइठल-बइठल बरत रसरिया॥हँसत॥
झूठो गिरत बाटे लोर बुतका भइली कमजोर
हूब करत नइखे, चली ना चकरिया॥हँसत॥
करिहन कहला के ना कान, बांची काछला से ना जान।
पानी ढारेली तब भभकेला गगरिया॥हँसत॥
सुनी ला लागेले गरिआवे, चाव से लरिका ना खेलावे।
तनी भर घूमि-घूमि के चरावे ना बकरिया॥हँसत॥
घटल नइखे अन-धन, कलपत बाड़न भीतरी मन।
जेकरा जरसे लागल बाटे लहबरिया॥हँसत॥
बहुआ सुन-सुन करके भासन, कॅटरउल कइली रासन।
आसन लाइके होखत बाटे मसखरिया॥हँसत॥
कइसन सुधर मिलली जानी, राखत बाड़ी कुल के पानी।
नइखी दोसरा औरत खानी फदगोबरिया॥हँसत॥
टोला भर से बाटे मेल, लगाई के भूतनाथ के तेल।
बबुआ बिहँसत बाड़न, झारि के बबरिया॥हँसत॥
होत बा सास-पतोह में जूध, लरिका कचरत बाड़न दूध॥
चार गो लागत बाटे नित लगहरिया॥हँसत॥
सभनी बेकत खमाखम, कहत बा लोग जाइब हम।
तीरथ करे खातिर, होत बा तकररिया॥हँसत॥
जतरा होई बड़ा भोर, लागल जगरनाथ में डोर।
दरसन करब जाइ कर भर नजरिया॥हँसत॥
दुख से कहत ‘भिखारी’ नाई, जनमवली-पोसली माई।
तेकर लिखत बानी कागज में खबरिया॥हँसत॥