भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वातायन / छवि निगम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छवि निगम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:53, 8 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

अंदर हूँ मैं
देहरी की लक्ष्मण रेखा के इस पार
शहतीरें साधे
दीवारों को बांधे
आँगन ओढ़े
पैर के अगूंठे से जमीन कुरेदते
छत की आखों से लाज छिपाये
प्रतीक्षा में...
बाहर भी मैं ही हूँ
देह की देहरी के उस पार
बाहों में बादल
बिजली का आँचल
हवाओं की पायल
सपनों की ऊँची परवाज भरते
आखों में नीला आसमां सजाये
प्रतीक्षा में...
इक वातायन के।