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"पहाड़ का पठार होना / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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दर्द की फसलें | दर्द की फसलें | ||
चरवाहा गीत गाएगा | चरवाहा गीत गाएगा | ||
− | गड़ेरिया | + | गड़ेरिया हाँक ले जाएगा |
अपनी भेड़ें | अपनी भेड़ें | ||
− | खूटे से बंधी गाय की | + | खूटे से बंधी गाय की आँखों में |
हरियाली तैरकर बहती होगी | हरियाली तैरकर बहती होगी | ||
रंभाते बछड़ों के सुर में | रंभाते बछड़ों के सुर में | ||
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नहीं ठहरेंगे किसी मोड़ पर | नहीं ठहरेंगे किसी मोड़ पर | ||
किसी इंतजार में | किसी इंतजार में | ||
− | औपचारिकताओं की | + | औपचारिकताओं की धुँध ने |
− | काटी संवेदना की | + | काटी संवेदना की साँस |
कि मैय्यत में जाते हुए भी | कि मैय्यत में जाते हुए भी | ||
सुविधा नहीं भूलता आदमी | सुविधा नहीं भूलता आदमी | ||
− | + | पाँव की पीठ पर | |
उकेरना नींद | उकेरना नींद | ||
− | वहम को | + | वहम को थपकियाँ देना |
− | सुनाना | + | सुनाना लोरियाँ मन के बहरेपन को |
कि फिर जागती देह का जागना | कि फिर जागती देह का जागना | ||
− | पठार से पहाड़ होकर. | + | पठार से पहाड़ होकर. |
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18:57, 20 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
रात के पहाड़ को काटकर
सपने पठार होंगे
उपजेंगी सीढ़ीनुमा खेतों में
दर्द की फसलें
चरवाहा गीत गाएगा
गड़ेरिया हाँक ले जाएगा
अपनी भेड़ें
खूटे से बंधी गाय की आँखों में
हरियाली तैरकर बहती होगी
रंभाते बछड़ों के सुर में
अवसान से पूर्व का आलाप होगा
हाथ की उभरी लकीरों का दाग
घिसकर मिटाएगी
ज़िंदगी समय के पत्थर पर
दीवारों से सर टकराते लोग
नहीं ठहरेंगे किसी मोड़ पर
किसी इंतजार में
औपचारिकताओं की धुँध ने
काटी संवेदना की साँस
कि मैय्यत में जाते हुए भी
सुविधा नहीं भूलता आदमी
पाँव की पीठ पर
उकेरना नींद
वहम को थपकियाँ देना
सुनाना लोरियाँ मन के बहरेपन को
कि फिर जागती देह का जागना
पठार से पहाड़ होकर.