भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इंतज़ार / सरोज सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:56, 23 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
अकसर इंतज़ार की दहलीज़ पर
अपनों के लौट आने का
होने लगता है एतबार
जैसे कि जाती हुई नदी
आती हूँ कहकर
पर्वत, घाटियों से होती हुई
फिर लौट आती है सावन में
पर अफ़सोस
इस तरह हमेशा
कहाँ लौट पाते हैं सब
"अभी आता हूँ"
कहकर जाते हुए लोग!