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"इंतज़ार / सरोज सिंह" के अवतरणों में अंतर

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21:56, 23 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

अकसर इंतज़ार की दहलीज़ पर
अपनों के लौट आने का
होने लगता है एतबार
जैसे कि जाती हुई नदी
आती हूँ कहकर
पर्वत, घाटियों से होती हुई
फिर लौट आती है सावन में
पर अफ़सोस
इस तरह हमेशा
कहाँ लौट पाते हैं सब
"अभी आता हूँ"
कहकर जाते हुए लोग!