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सुरेश कुमार सन्देंश जी का जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी में छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध गोला गोकर्णनाथ में पॉच फरवरी सन उत्रीस सौ बहतर (5-2-1972) ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री श्रीराम शुक्ल एवं माता का नाम श्रीमती राजरानी शुक्ला था। संदेश जी के पिता मूलतः शिव भक्त थे तथा माता जी स्वभावतः वैष्णव भक्त थीं। सुसंस्कृत संस्कारों से परिपूर्ण माता-पिता का प्रभाव संदेश जी के जीवन दर्शन में सहज ही अनुवांशिक रूप से पड़ा है। वे स्वंय मूलतः रामदूत अन्जनी पुत्र श्री हनुमान जी के अच्छे भक्त है।

व्यवहार

श्री सुरेश कुमार शुक्ल संदेश जी प्रतिभा-वैभव से सम्पन्न युवा साहित्यकार के रूप में पूर्ण रूपेण भारतीय संस्कारों एवं विचारों से समृद्ध सरल एवं सात्विक स्वभाव के कर्मठ साहित्यकार हैं। संदेश जी जाति-धर्म छुआ-छूत को न मानकर राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधते हुए एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व एवं कृत्तिव की भाषा में भावनाओं से परिपूर्ण युक्त साधना के कारण अपनी विषिष्ट पहचान बनाने में सफल हुए हैं | संदेश जी भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक एवं राष्ट्रीय भावनात्मक समेकता के आराधक सात्विक संस्कार एवं निश्छल व्यवहार के धनी हैं। संदेश जी में बच्चे-बूढे और जवान सभी को प्रभावित करने की एक अनुपम कला है।

शिक्षा

संदेश जी की प्रथामिक शिक्षा स्थानीय कस्तूरबा प्र्राइमरी पाठशाला (गोला गोकर्णनाथ) में शुरू हुई। शुरूआती शिक्षा काफी महत्व रखती है। इसलिए संदेश जी काफी मेहनत का अच्छे अंकों में निरन्तर उत्तीर्ण होते रहे। अभी कुछ ही कक्षाओं तक पहुँचे थे कि दुर्भाग्यवश उनकी पढाई कक्षा चार (4) में आते ही अवरूद्ध हो गयी। अकस्मात एक घटना घटने के कारण इनको पढाई रोकनी पड़ी। वह घटना इनकी पढाई ही नहीं बल्कि इनके जीवन को भी प्रभावित कर गयी। वह घटना थी इनकी माता श्रीमती राजरानी जी का देहान्त। संदेश जी अपनी माँ की मुक्ति के बाद बहुत दुःखी रहने लगे। इस बाल्यावस्था में संदेश जी बहुत दुःखी हुए। फिर भी इनके पिता श्रीराम शुक्ल जी ने माता की कमी महसूस नहीं होने दी वह स्वंय माता और पिता दोनों का प्यार-दुलार देकर इनका पालन-पोषण करने लगें। इनके पिता सदैव अपने परिवार को खुश देखना चाहते थे। इसलिए अपनी तरफ से कोई कमी नहीं होने दी। अच्छी देखरेख करते हुए अपनी जिम्मेदारी से कभी मुँह नहीं मोड़ा जिसके लिए आजीवन संदेश जी का स्वंय अपने पिता जी के ऋणी रहेंगे।

इस प्रकार से समस्याओं के समूह में रहते हुए संदेश जी ने कक्षा चार की पढाई उत्तीर्ण कर ली। कक्षा पॉँच के बाद प्रवेशात्मक (इन्ट्रेंश) परीक्षा अलग-अलग तीन विद्यालयों में देनी पड़ी| सभी में संदेश जी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण रहे। परन्तु दुर्भाग्यवश प्रवेश पाने में असफल रहे क्योकि इनकी आयु छह (6)महीने अधिक थी। इस समस्या को लेकर संदेश जी का नाम नहीं लिखा गया इससे वे काफी प्रभावित हुए। हताश व निराश संदेश जी को पढाई बन्द कर देनी पडी। धीरे धीरे समय कटता गया लगभग छह (6) माह व्यतीत हो गये। एक दिन संदेश जी अपने पिता श्री श्रीराम शुक्ल जी के साथ एक दुकान पर बैठे थे तभी दूकान के मालिक श्री राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने पूछा सुरेश पढ़ने क्यों नहीं जाते हो? उनके पूछने पर इनके पिता शुक्ला जी ने प्रवेश में हुई घटना की विवेचना की।

गुप्ता जी एक सरल स्वभाव के समाज सेवी व्यक्ति थे| संदेश जी के सेवा भाव से गुप्ता जी भी बहुत अच्छी प्रकार से परिचित थे| वैसे भी गरीबो के हित मे सोचना उनको लाभान्वित करवाना गुप्ता जी का सर्वप्रथम कर्तव्य था। अतः उन्होने संदेश जी को अपने स्कूल श्री ब्रह्रानन्द स्मारक विघालय में एक अध्यापक के साथ भेज कर कक्षा 6 में प्रवेश दिलवाया। जहाँ गुप्ता जी स्वयं अध्यक्ष के पद पर आसीन थे। कक्षा में प्रवेश के साथ ही साथ पाठ्य पुस्तको एवं कापियों का भी प्रबन्ध किया। इस प्रकार से राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता जी के कर्त्तव और सहयोग से संदेश जी की शिक्षा कक्षा आठ तक प्रथम श्रेणी में हुई। सभी अध्यापकों का स्नेह एवं सद्भाव आशीर्वाद सदैव उनके साथ रहा।

अध्यापको की अनुपस्थिति में संदेश जी जूनियर कक्षाओं में अध्यापन भी करते थे। छात्र मित्र होने पर भी उनका आदर व सम्मान बराबर करते रहे| संदेश जी को अपनी पाठ्य पुस्तकें पढ़ने के साथ श्रीरामचरितमानस, गीता एवं गीता प्रेस का कल्याण पत्र तथा पौराणिक एवं ऐतिहासिक पुस्तके खरीदना एवं पढ़ना और अन्य लोगो से भी पढ़वाने में भी विषेश रुचि रही है।

हाईस्कूल की पढ़ाई तक संदेश जी विधिवत विद्यालय जाकर पढ़ते रहे और इसके परिणाम स्वरूप हाईस्कूल भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। ज्यों त्यों कर इण्टरमीडियट की परीक्षा उत्तीर्ण कर आर्थिक कमजोरी के कारण अपनी पढाई को रोक दिया। जीवकोपार्जन के साथ साथ अल्पकालिक स्वाध्याय से सन उन्नीस सौ पचानबे (1995) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की| इसके तुरन्त बाद सन उन्नीस सौ सत्तानबे (1997) में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की। ये दोनो डिग्री द्वितीय श्रेणी में कानुपर विश्वविद्यालय के गोला स्थिति केन ग्रोअर्स नेहरु डिग्री कालेज से प्राप्त की।

इस प्रकार से सुरेश कुमार शुक्ल संदेश जी काफी समस्याओं एवं अवरोधों से संघर्ष करते हुए धैर्य और विवेक के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करने में सफल हुए। साहित्य यात्रा

युवा साहित्यकार श्री सुरेश कुमार शुक्ल संदेश जी बारह जनवरी सन उन्नीस सौ बान्नबे ई को स्थानीय विवेकानन्द बाल उद्यान के वार्षिकोत्सव में आयोजित एक काव्य सन्ध्या संदेश जी के लिए पहलीकाव्य संध्या थी। उस काव्य संध्या में एक जाने माने सुप्रसिद्ध विख्यात सारस्वत महाकवि डा अनन्तराम मिश्र अनन्त जी विशेष कवि के रूप में उपस्थित थे। सुरेश कुमार शुक्ल संदेश जी की पहली मुलाकात इसी उद्यान में उनसे हुई। यही संदेश जी की साहित्यिक यात्रा का प्रस्थान बिन्दु कहा जा सकता है। इस आयोजन में लगभग बीस कवियों और लगभग तीन सौ श्रोताओं का समूह था। उसमें पहली बार काव्य पाठ करने व सुनाने के बाद सन्देश जी का उत्साह और बढ़ा तथा वे अपने आप में गौरवान्वित भी हुए। स्वामी विवेकानन्द पर केन्द्रित इस काव्य निशा में स्वामी जी पर अनेक फुटकर रचनाये सुनने के बाद संदेश जी ने स्वामी विवेकानन्द पर एक लम्बी कविता रचने का द्रढ़ संकल्प किया। फिर संदेश जी का स्वामी विवेकानन्द जी के जीवन सार पर एक महाकाव्य रचने लगें इसमें उन्हें लगभग दस साल (10) लग गये। अन्ततोगत्वा ये काव्य रचने में पूर्णतः सफल भी रहे। सन दो हजार नौ (2009) में इनका रचा काव्य जय विवेकानन्द महाकाव्य लोकवाणी संस्थान दिल्ली से प्रकाशित हुआ।

सुरेश कुमार शुक्ल जी को जहाँ एक ओर जीवन रूपी नाव संघर्षमय तूफान में फंसी नजर आती है वही दूसरी ओर डॉ. अनन्त जी एक श्रेष्ठ, विवेकी, सहनशीलता एवं अनुभवशील साक्षात ईश्वर की तरह उस नाविक के पालन हार नजर आते हैं जो सन्देश जी के काव्य में सौभाग्य सूचक प्रकाश स्तम्भ के रूप में विद्यमान है। सन् उन्नीस सौ बानबे (1992) के बाद संदेश जी का डॉ. अनन्त जी के घर पर आना जाना बराबर होता रहा। संदेश जी की कर्मठता एवं सेवाभाव से प्रभावित होकर डॉ. अनन्त जी ने संदेश जी को पाँच जून सन उन्नीस सौ बानवे में दीक्षा देकर अपना श्रेष्ठ काव्य शिष्य बनाया। संदेश जी ही उनके एकमात्र काव्य शिष्य है। दीक्षित होकर संदेश जी ने अपने लेखन एवं अध्ययन का क्रम भी नियमतः सही कर लिया| डॉ. अनन्त जी ने सर्वप्रथम दोहा छन्द के माध्यम से अपने से विचारों की अभिव्यक्ति का निर्देश दिया। संदेश जी ने दोहा छन्द जैसी विधा में ध्यानस्थ मन एकाग्र कर काफी समय तक चिन्तन मनन और सृजन करने से दोहा छन्द विधा पर सफलता पा ली। उसके परिणाम स्वरुप संदेश जी स्वयं सर्वप्रथम दोहा लेखन में पारंगत हुए। एक वर्ष तक केवल दोहे लिखकर उन्होने अपने सृजन संयम का परिचय ही नही दिया बल्कि दोहा जैसे प्रभावशाली मनमोहक छन्द में महारत भी हासिल कर ली। एक वर्ष बाद संदेश जी ने सवैया छन्द का भी शुभारम्भ कर दिया। कभी कभी घनाक्षरियाँ भी लिखने लगे। इस प्रकार दोहे के साथ साथ अन्य छन्दों पर भी उनकी पकड़ मजबूत होती चली गयी। संदेश जी जिस विधा में भी लिखते उसमें काफी रूचि और हर्षोल्लास के साथ अपने शब्दों में अंकित कर उसे अपने से श्रेष्ठ कवियों को सुनाते तत्पश्चात उस पर उनकी प्रतिक्रिया की याचना करते जिससे रचना में संशोधन एवं परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त हो सके। उनके गुरुदेव डॉ. अनन्त जी भी रचनाओं में कलापक्ष एवं भावपक्ष पर विचार विमर्श करा उनका मार्गदर्शन करते रहे। डॉ. अनन्त जी उन्हे छन्द की बारीकिया शब्द सौष्ठव एवं भावों के गुम्फन की कला से अवगत कराते और साथ ही साथ नये और पुराने स्तरीय रचनाओं को पढ़ने का परामर्श भी देते। इस प्रकार से निरन्तर अध्ययन कर गुरु की असीम अनुकम्पा व आशीर्वाद से संदेश जी की रचनाओं में भाषिक एक छन्दसिक स्वरूप में उत्तरोत्तर और लगातार सुधार होता गया।

सुरेश कुमार शुक्ल संदेश जी की सामान्य से कुछ अधिक लम्बी कुछ कविताओं को उनके प्रबन्ध लेखन को अंकुरावस्था कहा जा सकता है। इस प्रकार की कविताएँ उनकी अप्रकाशित काव्य संग्रह (जय मातृभूमि) में संग्रहीत है। सन् उन्नीस सौ पंचान्नबे में संदेश जी ने युग ऋषि आचार्य श्री राम शर्मा के अनुपलब्ध जीवन वृत्त पर एक छोटा सा खण्ड काव्य रचने का मन में संकल्प लिया किन्तु आचार्य प्रवर की जीवनी किसी भी रूप में प्रकाशित न होने के कारण कठिनाइया का सामना करना पड़ा। शान्ति कुन्ज हरिद्वार से सम्पर्क करके वहाँ से कुछ एकाध तथ्य उपलब्ध हो पाये उन्ही तथ्यों के आधार पर श्री राम जीवनम शीर्षक खण्ड काव्य रचकार संदेश जी ने अपनी प्रबन्ध लेखन शक्ति को उदयाचल प्रदान कर अपने सुजन धर्म को अभिनव आयाम से अलंकृत किया। संदेश जी के सुजन और संघर्ष की गति समानतर जारी रही है और रहेगी ऐसा मेरा विचार है।

लगभग उन्नीस सौ सत्तानबे में संदेश जी की रचनाए देश के विभिन्न अंचलों से प्रकाषित होने वाली पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थी साथ ही साथ इनका मौलिक प्रकाशन भी प्ररम्भ हो चुका था। अर्थिक समस्याओं के बावजूद पुस्तक प्रकाशन का कार्य उनकी संकल्प शक्ति एवं लगन शीलता का ही परिणाम है। डॉ. अनन्त जी के माध्यम से दिल्ली के प्रकाशन लोकवाणी संस्थान के व्यस्थापक श्री ब्रह्रपाल सिंह जी से भेंट होने के बाद वे संदेश जी के व्यक्तिगत एवं कृतित्व से इतना प्रभावित हुए कि प्रकाशन का न्यूनतम व्यय वह भी किश्तों में लेकर उनकी कृतियों के प्रकाशन हेतु अपनी सहमति प्रदान की ।

सन् उन्नीस सौ निन्यानबे से अब तक लगभग दस वर्ष से संदेश जी कृतियों का प्रकाशन एवं प्रचार प्रसार लोकवाणी संस्थान द्वारा किया जा रहा है। इन कृतियों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं व पहलुओं को लेकर उनको सही दिशा निर्देश दिया गया है। अर्थिक समस्या के चलते सन 1996 में संदेश जी ने गोला गोकर्णनाथ स्थित श्री राम हनुमान मन्दिर में पूजाचार्य के पद पर नियुक्त होकर जिम्मेदारी के साथ काम किया। श्री हनुमान जी विद्या में श्रेष्ठ प्रखण्ड पण्डित माने जाते है। उनकी शरण में पहुँचते ही संदेश जी के अध्ययन एवं सुजन में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ तब से आज तक दो दर्जन कृतियों की रचनाएँ खुद संदेश जी की विद्वता का प्रमाण है मन्दिर की सेवाभक्ति एवं पूजा अर्चना करते हुए संदेश जी को मध्यान्ह में विश्राम एवं स्वाध्याय के लिए पर्याप्त समय भी मिलने लगा जिसका सदुपयोग करते हुए संदेश जी ने अनेक पुराणें का अध्ययन किया। ज्यादातर सामाजिक साहित्यों का भी अनुशीलन किया मन्दिर पर धीरे-धीरे नगर तथा बाहर के साहित्यकारों का आवागमन होने से संदेश जी की विभिन्न विचारधाराओं एवं मानकसिताओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगा। उनका यह साहित्यिक सत्संग उनके धर्म के सर्वथा अनुकूल एवं पथ का पाथेय बना। एक सजग रचनाधर्मी के दायित्व का निर्वाह करते हुए संदेश जी ने कुछ पौराणिक बिन्दुओं को यथार्थ के धरातल से जोड़कर उनके माध्यम से अपने संदेश को साहित्यिक स्वर प्रदान किया। धर्म विजय, करमैतीबाई एवं उत्सर्ग जैसे उनके खण्डकाव्य पौराणिक होते हुए भी वर्तमान में पूर्णतः प्रासंगिक हो गये हैं। परम्परागत लेखन के साथ संदेश जी ने कुछ अनछुए को भी हिन्दी साहित्य की अभिवृद्धि के लिए सजाया संवारा है| काशिराज की पुत्री अम्बा जिस प्रकार अपने जीवन में सदैव उपेक्षित रही उसी प्रकार हिन्दी साहित्य में भी उपेक्षित थी। डॉ. किशोर काबरा की परामर्श एवं अनन्त जी के मार्गदर्शन में पाँच वर्ष के कठिन परिश्रम एवं कठोर साधना के परिणामस्वरूप अम्बा के जीवनवृत्त की समग्र नारी तत्व से जोड़ते हुए एक नये महाकाव्य अम्बा का रूप देकर हिन्दी कविता में संदेश जी ने एक नवीन अभिवृद्धि कर अपने कविधर्म का उत्कृष्ट प्रदर्षन किया।

सुरेश कुमार शुक्ल संदेश जी ने भारतीय संस्कृति में शुभ का संकेत करती मछली जैसे जीव पर कविता की है जो इस युग की महत्वपूर्ण कृति सिद्ध होती है। इससे पहले हिन्दी कविताओं में मछली पर कही-कही छुट पुट कविताओं की चर्चा सुनी जाती थी लेकिन संदेश जी अपने कठिन परिश्रम और साधनापूर्ण एवं सादगीमय जीवन में मछली पर एक महाकाव्य की रचना की। जिसमें संदेश जी ने पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्व का अध्ययन पर मछली से सम्बन्धित अनेक पौराणिक बिन्दुओ को एकत्र कर आत्मचरितात्मक शैली में महाकाव्य का आकार प्रदान किया है। यह सर्वथा मौलिक एवं नवीनतम है। उक्त दोनो कृतियाँ संदेश के साथ साथ हिन्दी कविता के लिए भी महत्वपूर्ण एवं गौरव की उपलब्धि है संदेश जी श्री हनुमान मन्दिर में लगभग बाईस वर्ष के समय में छोटे बड़े काव्य खण्ड दर्जनो की संख्या में रचे है। उसमें से छोटी बड़ी चौबिस पुस्तकों का प्रकाशन भी हो चुका है।

प्रकाशित रचनाएँ

1. श्रीरामजीवनम (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 1999) 2. श्रीतपेश्वरी चालीसा (प्रकाशक -स्वयं लेखक, सन्-2000) 3. श्रीहनुमतबावनी (प्रकाशक -स्वयं लेखक, सन्-2000,2004,2007) 4. श्री अम्बालहरी (प्रकाशक -स्वयं लेखक, सन्-2001) 5. धर्मविजय (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2004) 6. सपनों के प्रासाद (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2005) 7. जीवन के सोपानों मे (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2006) 8. गोला गोकर्णनाथ माहात्म्य (प्रकाशक -स्वयं लेखक, सन्-2006) 9. निर्बन्ध निर्झर (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2007) 10. अनन्त-आविर्भाव (प्रकाशक -स्वयं लेखक, सन्-2008) 11. जय विवेकानन्द ‘महाकाव्य’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093 ) 12. मैं मछली हूँ ‘महाकाव्य’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2010) 13. श्रीराम कथा विमर्श ‘सम्पादित’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2010) 14. मैं वृक्ष हूँ ‘महाकाव्य’ (प्रकाशक -स्वयं लेखक, सन्-2011) 15. धरती के सपूत ‘सम्पादित’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2012) 16. आदर्श प्रेरक प्रेरक प्रसंग ‘सम्पादित’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2012) 17. अमरपुत्र ‘सम्पादित’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2012) 18. मानवता के उपासक ‘सम्पादित’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2012) 19. प्रवंचिता ‘महाकाव्य’ (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2014) 20. चाँदनी के घर (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2015) 21. रामकथा के रूप अनेक (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2015) 22. विविध भाषाओं में रामकथा (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2015) 23. दर्पण देखे कौन (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2015) 24. जय मातृभूमि (प्रकाशक -लोकवाणी संस्थान डी-585ए, गली नं0 3, अशोक नगर निकट वजीराबाद रोड, शाहदरा दिल्ली-110093, सन् 2016)

सम्मान

1. विवेकानन्द बाल उद्यान गोला से ‘विवेकश्री’ उपाधि 2. साहित्य संगीत कला अकादमी परियावॉ प्रतापगढ उ0 प्र0 से विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि 3. भाउराव देवरस सेवान्यास लखनऊ उ0 प्र0 द्वारा पं0 प्रतापनारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार सम्मान (2006) 4. उ0 प्र0 हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा आनन्द मिश्र सर्जना पुरस्कार, 2004 5. अखिल भारतीय साहित्य कला संगम उदयपुर राजस्थान द्वारा कलम कलाधर की मानद उपाधि 6. मॉ विन्ध्य वासिनी जनकल्याण ट्रष्ट दिल्ली द्वारा विन्ध्यवासिनी पत्र से सम्मानित 7. सरिता लोकभारती संस्थान सुल्तानपुर उ0 प्र0 द्वारा साहित्य गौरव सम्मान 8. अखिल भारतीय साहित्य कला परिशद कुशीनगर उ0 प्र0 द्वारा राष्ट्र भाषा रत्न की मानद उपाधि 9. अखिल भारतीय नवोदित साहित्यकार परिषद् उ0 प्र0 द्वारा पं0 रामनारायण त्रिपाठी ‘पर्यटक’ स्मृति नवोदित स्वर सम्मान 10. कादम्बरी जबलपुर म0 प्र0 द्वारा स्व0 डॉ0 विश्णुनारायण तिवारी सम्मान 2011 11. म0 प्र0 तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा ‘तुलसी सम्मान 2010’ 12. विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ गॉधी नगर बिहार द्वारा विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि से अलंकृत। 13. शिव संकल्प साहित्य परिषद् होशंगाबाद म0 प्र0 द्वारा भक्तिकाव्य कौस्तुभ एवं काव्य कलाधर की मानद उपाधि। 14. ऋचा प्रकाशन कटनी म0 प्र0 द्वारा साहित्य भूषण एवं भारत श्री की मानद उपाधियों से सम्मानित। 15. राष्ट्र कवि पं0 बंशीधर शुक्ल स्मारक एवं प्रकाशन समिति मन्योरा लखीमपुर खीरी द्वारा जनकवि पं0 बंशीधर शुक्ल पुरस्कार से पुरस्कृत। 16. संस्कार भारती की अवध प्रान्त इकाई द्वारा अभिनन्दन। 17. तुलसी विचार मंच गोला गोकर्णनाथ खीरी उ0 प्र0 द्वारा अभिनन्दन। 18. अन्तर्ज्योति सेवा संस्थान गोला गोकर्णनाथ खीरी द्वारा वार्षिक समारोह में सम्मानित। 19. यू0 एस0 एम0 पत्रिका के रजत जयन्ती सम्मान समारोह (गाजियाबाद उ0 प्र0) में युवा कवि गौरव सम्मान ;2009 से सम्मानित। 20. म0 प्र0 पत्र लेखक मंच बैतूल मध्य-प्रदेश द्वारा साहित्य सागर की सम्मानोपाधि से विभूशित (2011)। 21. उ0 प्र0 हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा तुलसी नामित पुरस्कार। 22. राजकीय औघोगिक एवं कृषि प्रदर्शनी अलीगढ़ उ0 प्र0 द्वारा नीरज शहरयार पुरस्कार।