भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छाँव / मृदुला शुक्ला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला शुक्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:25, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
छाँव कहाँ होती है
अकेली खुद में कुछ
ये तो पेड़ों पर पत्तियों का
दीवारों पर छत का
वजूद भर है
पतझड़ में पेड़ों से नहीं झरती
महज पीली पत्तियां भर
कतरा कतरा करके
गिरती है पेड़ों की छाँव भी
बदलते मौसम के साथ
लौटती नहीं
केवल पत्तियां भर
लौट आते हैं परिंदों के घोसले
ठिठकते हैं
मुसाफिरों के कदम भी
ठूंठ हुए पेड़ों के नीचे से
छाँव जा दुबकती है
पेड़ों के खोखले कोटरों में
इंतज़ार करती है रुकने का
बर्फीले तूफानों के
सेती हुई साँपों के अंडे
छाँव और धुप के बीच
हमेशा तैनात होती है
मरन गुलाबी कोपलें पूरी मुस्तैदी के साथ|