भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गमलों वाले पौधे / मृदुला शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला शुक्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:29, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

त्रासद है गमलों मैं फूलों वालों पौधों होना
विस्तार नहीं पाती हमारी शिराएँ धरती से अमृत
सोखने तक

बौनी होती जाती है धमनियां
दिन ब दिन
बोनसाई बनने की
अनचाही यात्रा मैं

सुना है बागीचों मे फूलों पर चलती है
भौरों और तितलियाँ की प्रेम कहानियाँ
अमृत बटोरती मधुमखियाँ
मगन मन गुनगुनाती है उनके प्रणय गीत

हम उगते है घरो की बाल्कनियों
घरों का वो कोना जो जिन्दा रखता है
मरते हुए धरती आकाश ,चाँद तारों को

जहाँ मुह चिढाते हैं हमें रात भर काफी के
जूठे मग
तिर्यक मुख बियर की औंधी पड़ी बोतलें

पानी मिलता है तौल कर
(जिसे अक्सर भूल जाती है नामुराद कमला )
जो बूँद बूँद टपक जाता है हमारी
जिजीविषा रंध्रो से

चलो कोई नहीं
हमारा तो तब भी आधार है
हमारे कोमरेड
तो लटके होतें हैं खूंटियों पर
सलीब परजैसे