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"घटाएँ छँटीं/ ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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+ | यूँ धरा मुस्कुराए। | ||
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+ | तेरा मिलना | ||
+ | ज्यूँ दमकें सितारे | ||
+ | मन की धरा | ||
+ | कलियाँ खिल उठीं | ||
+ | आज अम्बर भरा । | ||
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+ | घटाएँ छँटीं | ||
+ | सज गया धनक | ||
+ | मन बावरे ! | ||
+ | तेरे हिस्से आई है | ||
+ | फिर भी क्यों कसक । | ||
+ | 12 | ||
+ | दिल पे मेरा | ||
+ | बस ही नहीं जब | ||
+ | कैसी लाचारी ? | ||
+ | कहने को मेरा ये, | ||
+ | है जागीर तुम्हारी ! | ||
+ | 13 | ||
+ | नज़रें उठीं | ||
+ | ज्यों चमके सितारे! | ||
+ | झुक ही गईं | ||
+ | लो मेरी निगाहें भी | ||
+ | सजदे में तुम्हारे । | ||
+ | 14 | ||
+ | मन-अम्बर | ||
+ | मुहब्बत का चाँद | ||
+ | छुपे न कभी | ||
+ | यूँ ही रूठें , मनाएँ | ||
+ | उन्हें सौ-सौ दुआएँ । | ||
+ | 15 | ||
+ | खूब खिलना | ||
+ | महक ,मुस्कुराना | ||
+ | कोई न डर | ||
+ | कटेगी काली रात | ||
+ | कब होगी सहर ? | ||
+ | 16 | ||
+ | गुड़िया घर | ||
+ | बना ख़ुद मिटाया | ||
+ | क्या सुख पाया ? | ||
+ | देकर छीन लिया | ||
+ | फिर कैसे मुस्काया ? | ||
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16:43, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
9
बरसे सुधा
चाँदनी की चाँदनी
नभ बिछाए
महकी रातरानी
यूँ धरा मुस्कुराए।
10
तेरा मिलना
ज्यूँ दमकें सितारे
मन की धरा
कलियाँ खिल उठीं
आज अम्बर भरा ।
11
घटाएँ छँटीं
सज गया धनक
मन बावरे !
तेरे हिस्से आई है
फिर भी क्यों कसक ।
12
दिल पे मेरा
बस ही नहीं जब
कैसी लाचारी ?
कहने को मेरा ये,
है जागीर तुम्हारी !
13
नज़रें उठीं
ज्यों चमके सितारे!
झुक ही गईं
लो मेरी निगाहें भी
सजदे में तुम्हारे ।
14
मन-अम्बर
मुहब्बत का चाँद
छुपे न कभी
यूँ ही रूठें , मनाएँ
उन्हें सौ-सौ दुआएँ ।
15
खूब खिलना
महक ,मुस्कुराना
कोई न डर
कटेगी काली रात
कब होगी सहर ?
16
गुड़िया घर
बना ख़ुद मिटाया
क्या सुख पाया ?
देकर छीन लिया
फिर कैसे मुस्काया ?