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"घटाएँ छँटीं/ ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मन बावरे !
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तेरे हिस्से आई है
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फिर भी क्यों कसक ।
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दिल पे मेरा
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बस ही नहीं जब
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कैसी लाचारी ?
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कहने को मेरा ये,
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है जागीर तुम्हारी !
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ज्यों चमके सितारे!
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लो मेरी निगाहें भी
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सजदे में तुम्हारे ।
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मन-अम्बर
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छुपे न कभी
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यूँ ही रूठें , मनाएँ
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उन्हें सौ-सौ दुआएँ ।
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खूब खिलना
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महक ,मुस्कुराना
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कोई न डर
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कटेगी काली रात
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कब होगी सहर ?
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गुड़िया घर
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बना ख़ुद मिटाया
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क्या सुख पाया ?
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देकर छीन लिया
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फिर कैसे मुस्काया ?
  
 
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16:43, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

9
बरसे सुधा
चाँदनी की चाँदनी
नभ बिछाए
महकी रातरानी
यूँ धरा मुस्कुराए।
10
तेरा मिलना
ज्यूँ दमकें सितारे
मन की धरा
कलियाँ खिल उठीं
आज अम्बर भरा ।
11
घटाएँ छँटीं
सज गया धनक
मन बावरे !
तेरे हिस्से आई है
फिर भी क्यों कसक ।
12
दिल पे मेरा
बस ही नहीं जब
कैसी लाचारी ?
कहने को मेरा ये,
है जागीर तुम्हारी !
13
नज़रें उठीं
ज्यों चमके सितारे!
झुक ही गईं
लो मेरी निगाहें भी
सजदे में तुम्हारे ।
14
मन-अम्बर
मुहब्बत का चाँद
छुपे न कभी
यूँ ही रूठें , मनाएँ
उन्हें सौ-सौ दुआएँ ।
15
खूब खिलना
महक ,मुस्कुराना
कोई न डर
कटेगी काली रात
कब होगी सहर ?
16
गुड़िया घर
बना ख़ुद मिटाया
क्या सुख पाया ?
देकर छीन लिया
फिर कैसे मुस्काया ?