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"कागज़ और आदमी / अनुपमा तिवाड़ी" के अवतरणों में अंतर

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पढ़ी-लिखी दुनिया में
आदमी चुप और कागज़ बोलता है
अब हर दिन कागज़ संजो रहा है
ताकत अपने में
आदमी से अब कागज़ तेज चलता है
आदमी से अब कागज़ तेज बोलता है
इसलिए
अब हर दिन कागज़ पर कागज़ तैयार हो रहे हैं
फाइलों पर फाइलें बन रही हैं
प्रजेंटेशन पर प्रजेंटेशन बन रहे हैं
कैमरे भी अपनी आँखें चमका रहे हैं
स्टेच्यू पर स्टेच्यू तैयार हो रहे हैं
स्टेज पर सब उगलने के लिए
रात-दिन इस पढ़ी-लिखी दुनिया में
अब कागज़ आदमी और
आदमी कागज़ हो गया है