भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कौन अपना? / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category: सेदोका]] | [[Category: सेदोका]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 41 | |
− | + | सिर्फ़ दो बोल, | |
+ | जो मन को सींचते | ||
+ | वे सबको खींचते, | ||
+ | नील नभ में | ||
+ | कुछ भी विलीन हो, | ||
+ | वे ही रह जाएँगे। | ||
+ | 42 | ||
+ | सोया हुआ जो | ||
+ | मन के द्वार आके | ||
+ | जगा देता है कोई, | ||
+ | जन्मों की नींद | ||
+ | रस-बाँसुरी बजा | ||
+ | भगा देता है कोई. | ||
+ | 43 | ||
+ | प्रभु का लेखा | ||
+ | हमको चलाता है | ||
+ | नाच भी नचाता है | ||
+ | जब चाहता, | ||
+ | मन्त्र बन मन में | ||
+ | उतर ही जाता है। | ||
+ | 44 | ||
+ | तेज़ हवाएँ | ||
+ | घायल हुए डैने | ||
+ | उड़ें किधर जाएँ? | ||
+ | कोहरा छाया | ||
+ | जीवन-पथ पर | ||
+ | आहत हैं दिशाएँ। | ||
+ | 45 | ||
+ | कौन अपना? | ||
+ | हर साथी हो गया | ||
+ | इक टूटा सपना, | ||
+ | शब्दों की कीलें | ||
+ | चुभती दिन-रात | ||
+ | बोलो किसे बताएँ! | ||
</poem> | </poem> |
14:24, 12 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
41
सिर्फ़ दो बोल,
जो मन को सींचते
वे सबको खींचते,
नील नभ में
कुछ भी विलीन हो,
वे ही रह जाएँगे।
42
सोया हुआ जो
मन के द्वार आके
जगा देता है कोई,
जन्मों की नींद
रस-बाँसुरी बजा
भगा देता है कोई.
43
प्रभु का लेखा
हमको चलाता है
नाच भी नचाता है
जब चाहता,
मन्त्र बन मन में
उतर ही जाता है।
44
तेज़ हवाएँ
घायल हुए डैने
उड़ें किधर जाएँ?
कोहरा छाया
जीवन-पथ पर
आहत हैं दिशाएँ।
45
कौन अपना?
हर साथी हो गया
इक टूटा सपना,
शब्दों की कीलें
चुभती दिन-रात
बोलो किसे बताएँ!