भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ब्रह्मा / संजीव ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:06, 23 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
इन मच्छरों ने आफत मचा रखी है
एक को मुट्ठी में मसलते हुए
कहा उन्होंने–
ये चूहे कमीने!
भगवान ने इन्हें बनाया ही क्यों?
ओफ! ये कुत्ते
भौंकते रहते हैं रात भर
नींद खराब करते हैं!
ये गधे,
अक्ल से पैदल
इन्हें दूसरे ग्रह पर भेजो
मैं गिद्धों की प्रजाति को
बचाने का पक्षधर हूँ
मैं चाहता हूँ
साफ–शफ़्फाक धरती
जहाँ न गधे हों, न चूहे
बस मैं रहूँ,
मेरा साम्राज्य रहे
जहाँ हों चमचमाते शीशे,
वातानुकूलित भवन,
विमान,
खूबसूरत अप्सराएँ
खुशबू
और शराब!
गुदगुदे बदन पर
खड़े होकर
निहारा करूँ मैं
अपनी बनाई सृष्टि
किसी और की बनाई सृष्टि
मुझे सख्त नापसंद है।