"रोम जल रहा है / ज्योत्स्ना मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योत्स्ना मिश्रा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:29, 27 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
कहते हैं
जब रोम जल रहा था
कहते हैं
तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था
और कहते हैं
जनता ने बगावत की थी
जनता फिर बगावत पर है
बहस जारी है
पर इस बार
बहस नीरो का तख्ता पलटने को लेकर नहीं
बहस रोटी या केक को लेकर भी नहीं है
बहस नीरो कौन है, पर है
बहस बाँसुरी की क्वालिटी पर भी है
बहस सुरों के सही ग़लत होने पर है
बहस जनता कौन है? पर भी है
आमो खास के बीच बहस जारी है
जो आम है, वो खास बनने को लड़ रहा है
जो खास है उसे आम का चेहरा छीनने
की जिद है
नीरो बनने को जंग जारी है
जनता के दो गुटों में संघर्ष है
नीरो के कई गुटों में संघर्ष है
जनता को जनता कहलाने पर ऐतराज़ है
नीरो को नीरो कहलाने पर नाराजगी है
पर एक बात पर आम रज़ामंदी है
सबको बाँसुरी चाहिए
बाँसुरी के लिए संघर्ष जारी है
मार काट
शहादत, क्रांति, जिहाद
जम कर चल रहा है
रोम फिर से जल रहा है ...