भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चुप्पा कवि / सीमा संगसार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा संगसार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:05, 6 मार्च 2018 के समय का अवतरण
शब्द खामोश नहीं होते
उनके स्वर और मात्राएँ
मिलकर बनाते हैं
हमेशा ही नई कोई व्यंजना!
एक कवि
कभी चुप नहीं बैठता
चुप्पा कवि
दरअसल
चढ़ा रहा होता है
अपनी कविता पर शान...
बाज समय के
क्रूर अहसासों को
फड़ङ़ाते हुए वह
समेट रहा होता है
चंद उबलते हुए हालात को
जिनके गर्म लहू के छींटे
यदा-कदा
गिरते रहते हैं
उसके बदन पर
और वह
और तेज / और तेज
करता जाता है
अपनी धार को
और भी पैना
बिन कहे
चुपचाप...