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"मौन और शब्द / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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विवश कुछ बोला था;
 
विवश कुछ बोला था;
 
सुना, मेरा वह बोलना
 
सुना, मेरा वह बोलना
दुनियाँ में काव्य कहलाया था।
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दुनिया में काव्य कहलाया था।
  
 
आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,
 
आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,
 
अब न पीड़ा है न आनंद है
 
अब न पीड़ा है न आनंद है
 
विस्मरण के सिन्धु में
 
विस्मरण के सिन्धु में
डूबता सा जाता हूँ,
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डूबता-सा जाता हूँ,
 
देखूँ,
 
देखूँ,
 
तह तक
 
तह तक

14:48, 22 मार्च 2018 का अवतरण

एक दिन मैंने
मैन में शब्द को धँसाया था
और एक गहरी पीड़ा,
एक गहरे आनंद में,
सन्निपात-ग्रस्त सा,
विवश कुछ बोला था;
सुना, मेरा वह बोलना
दुनिया में काव्य कहलाया था।

आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,
अब न पीड़ा है न आनंद है
विस्मरण के सिन्धु में
डूबता-सा जाता हूँ,
देखूँ,
तह तक
पहुँचने तक,
यदि पहुँचता भी हूँ,
क्या पाता हूँ।