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मैं जा रही हूँ खेत
धान रोपेगें साथ-साथ
तुम साथ चलो
विरह से आकंठ बोलती वो
निकल जाती है हरे पत्तों के रास्ते
मैं जा रहा हूँ पहाड़
लिये हाथ में फ़रसा और कुदाल
तुम्हारे लिये ही जा रहा हूँ दूर
थक गया चराते बकरी भैंस
कुछ सपने कमाने, लाने
विरह के गीत गाती रहना
बजाता रहूंगा मैं बांसुरी
रास्ते की दूभ मुस्कुराती रहेगी
कोयल नदी रूक जाएगी
जब तुम पश्चिम दिशा में ताकोगी
प्रेम में ज़रूरी तो नहीं साथ रहना
अलग हो जाते हैं करके मिलने का वादा
आदिवासी जोड़े