"उत्तर सत्य / अंचित" के अवतरणों में अंतर
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15:43, 27 मार्च 2018 के समय का अवतरण
शुन्य
की मेरे क़त्ल के बाद
उसने जफ़ा से तौबा
कहते हुए कांप गया असद,
जो होना था उसको तो हो के रहना था
एक
"किस दिशा जाना है कविवर?"
पूछता है मेघ,
सोया पड़ा है यक्ष
महाकवि खुजा रहे हैं अपनी दाढ़।
दो
चिंतातुर है राजा
शोषितों से भरा है जनपद
और वह गाँव चाहता है निरापद
महत्त्वाकांक्षा की शादी में रसोईया है लोकतंत्र।
तीन
पानी और प्रतिच्छाया में फर्क क्या है
डोल रहा है दिग-दिगन्त
हँस रही है द्रौपदी
खीज रहा है दुर्योधन।
चार
एक आदमी खाता है,
एक आदमी के पास बैंक खाता है।
एक आदमी है जो ना खाता है ना खाने देता है
सबसे सुखी कौन है?
पांच
भाषा में गुंजाईश है।
ये हमारे समय का सबसे बड़ा सत्य है।
(कोई कर सकता है इसका भी विरोध)
आदमी के हाथ का निवाला
भर रहा है भाषा की अंतड़ियों में पैदा हुई भूख।
फुटनोट:
पोखर में मछलियों के साथ तैर रहा था चाँद। उस पर कवियों ने अनगिनत कवितायेँ लिखीं। बार-बार उनमें चाँद मारा गया। हम पढ़ते रहे पोस्टमॉर्टेम रिपोर्ट।